एन. रघुरामन का कॉलम:क्या हमारे केजी से लेकर प्राइमरी स्कूल सिर्फ फीमेल-कोडेड हैं?

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

मैं हाल ही में एक प्राइमरी स्कूल गया, जहां क्लास में बच्चे एक दृश्य ड्रॉ करने में व्यस्त थे। उस क्लास में जहां सबकी ड्राइंग में एक महिला टीचर थीं, पर दो लड़कों की ड्राइंग ने मेरा ध्यान खींचा, जिन्होंने क्लास में अपने पिता को ड्रॉ किया था! उनके लिए उनके पिता हीरो थे।

इस वाकिए ने मुझे अमेरिकी लेखक रिचर्ड वी रीव्स की किताब ‘ऑफ बॉयज एंड मैन ः वाय द मॉडर्न मेल इज स्ट्रगलिंग, वाय इट मैटर्स, एंड वाट टु डू अबाउट इट’ याद दिला दी। उन्होंने कहा, ‘जिन लड़कों को स्कूल में जूझना पड़ता है, उनके लिए प्राइमरी स्कूल में पुरुष शिक्षकों की तत्काल जरूरत है। मुझे वाकई चिंता होती है कि शैक्षणिक सफलता का विचार तेजी से महिला केंद्रित होता जा रहा है। अगर लड़कों को लगता है कि एजुकेशन क्षेत्र उनके लिए नहीं है तो ये जोखिम वाली बात है।’

जब पिछली पीढ़ी ने लड़कियों व लड़कों के बीच बढ़ते लैंगिक अंतर की ओर ध्यान दिलाया, जहां बड़ी संख्या में लड़के कम अंकों के साथ स्नातक हो रहे थे और लड़कियों की संख्या में कम पढ़ रहे थे और अधिक दुर्व्यवहार कर रहे थे तो अमेरिका में कई स्टीड हुईं। इनसे पता चला कि प्राइमरी स्कूल में लड़कों को पुरुष शिक्षक होने से लाभ होता है।

हालांकि केजी स्टूडेंट्स को लेकर स्टडी नहीं हुई, उन्होंने पाया कि उस बड़े-से देश में उस सेक्शन में पढ़ाने वाले टीचर्स में महज 3% पुरुष हैं। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर थॉमस एस. डी, जिन्होंने दशकों तक छात्रों पर शिक्षक जनसांख्यिकी के प्रभाव पर शोध किया है, वे कहते हैं कि केजी पढ़ाने वाले पुरुष लड़कों के लिए फर्क ला सकते हैंं।

यहां तक कि भारत में भी छात्रों के कम अंकों का मुद्दा है। अक्सर अखबार में ऐसी हेडलाइन देखती हैं, “इस साल भी लड़कियों ने लड़कों को पीछे छोड़ा।’ वहीं स्कूल मालिकों को लगता है कि पुरुष टीचर्स में धैर्य नहीं हैं, कम वेतन स्वीकार नहीं करते, इसलिए उनके बजट में महिला शिक्षक फिट हैं। इसके अलावा पुरुष टीचर्स, जो घर के मुखिया के रूप में देखे जाते हैं, वे ‘केजी टीचर’ के पेश के रूप में नहीं जाने जाना चाहते।

पर अमेरिका में एजुकेटर्स के बीच अलग सोच पुरुष शिक्षकों के लिए नए अवसर खोल रही है। 38 साल के डैनियल सनेज का उदाहरण लें, टेक्सास में केजी स्टूडेंट्स को पढ़ाने से पहले वो सेना में लेफ्टिनेंट थे। वह कहते हैं कि रौब दिखाकर वो लड़कों को अनुशासित कर सकते हैं।

बच्चों के दिमाग में लेफ्टिनेंट रोल मॉडल इफेक्ट होता है। लड़के खुद को मेल टीचर्स से जोड़कर देख पाते हैं, इसलिए मेल टीचर्स फर्क पैदा करते हैं, जैसे चीजें इस तरह से पेश करते हैं, जो कि लड़कों के लिए ज्यादा सामयिक हो या रूढ़िवादिता से प्रभावित न हों।

विशेषज्ञ कहते हैं कि लड़के दुर्व्यवहार करते हैं क्योंकि वे बोर हो जाते हैं, इसलिए नहीं कि ये उनकी आदत है। एक और तर्क चल रहा है कि पांच में से एक लड़का बिना पिता के बड़ा होता है, इसलिए उन्हें क्लास में मेल टीचर्स पसंद आते हैं।

भोपाल में एक इंटरनेशनल स्कूल की प्रिंसिपल भावना श्रीवास्तव इसकी ओर इशारा करती हैं, छोटी क्लासों में ज्यादातर लड़के मेल स्पोर्ट्स टीचर की तरफ आकृष्ट होते हैं क्योंकि वे मानते हैं कि फुटबॉल जैसे खेल सिर्फ वही उन्हें सिखा सकते हैं। यहां तक कि जब मैं भी स्टूडेंट था और स्पोर्ट्स टीचर मेरे बेस्ट फ्रेंड थे, तो वो नागपुर में हमें सेना की बंदूकों-टैंकों के बारे में बहुत कुछ बताते रहते थे, क्योंकि ये शहर सेना का एक सेंटर है।

फंडा यह है कि हमारे देश में लड़कों के ग्रैजुएशन में कम अंकों से समस्या दिखाई दे रही है, ऐसे में कम से कम केजी व प्राइमरी में मेल टीचर्स के प्रभाव के बारे में बात करनी होगी। कौन जाने कि हमारे अधिकारी अपनी चर्चा में लड़कों के गिरते ग्रेड का समाधान ढूंढ लेंगे।

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