एन. रघुरामन का कॉलम:धैर्य किसी भी कोयले को चमकते हीरे में बदल सकता है

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

वे महज 19, 22 साल के हैं। हाल-फिलहाल तक वे एक-दूसरे से अनजान थे, दोनों में बस एक बात कॉमन थी कि साधारण पृष्ठभूमि से आने के बावजूद वे पढ़ाई में बेहद होशियार थे। आर्थिक जरूरतें पूरी करने का विचार उनके दिमाग पर हावी था, फिर भी उन्होंने पढ़ाई पर फोकस किया और सबसे प्रतिष्ठित- एमबीबीएस कोर्स में दाखिला लेकर माता-पिता को गर्व करने का मौका दिया, जिसका ख्वाब ज्यादातर विद्यार्थी देखते हैं।

सुमित मंडोलिया (19) राजस्थान के छोटे-से गांव से हैं, उनके पिता किसान हैं और तीन लोगों के परिवार में अकेले कमाने वाले हैं। नीट में 650 से ज्यादा अंक प्राप्त करके पश्चिम बंगाल के सरकारी कॉलेज में दाखिला लेने के बाद घरवालों को उम्मीद थी कि आने वाले दिनों में उनका बेटा डॉक्टर बनेगा और चंद सालों बाद परिवार गरीबी के दलदल से बाहर आ जाएगा। लेकिन सुमित के दिमाग में परिवार की गरीबी चलती रही।

इसी तरह प्रयागराज के कृष्ण केसरवानी (22) हैं। सुमित की तरह उसने भी साल 2023 में 83% अंकों के साथ नीट पास की और उत्तराखंड के कॉलेज में दाखिला मिला। चंद महीनों पहले उसके पिता को 20-25 लाख रु. का घाटा हो गया। केसरवानी को इसकी जानकारी लगी, पर घरवालों ने कहा कि वो सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे। लेकिन परिवार पर अचानक आई यह आर्थिक विपत्ति उसके दिमाग में चलती रही।

सुमित, एमबीबीएस कर रहे अपने चचेरे भाई के माध्यम से राजस्थान में काउंसिलिंग एजेंसी चला रहे किशोर लाल के संपर्क में आया। लाल ने धीरे-धीरे सुमित से वादा करना शुरू कर दिया कि उसे बड़ी रकम मिलेगी, जिससे वह परिवार की जरूरतें पूरी कर सकता है।

इसी तरह केसरवानी की मुलाकात एक सार्वजनिक मेस में, उप्र के बिजनौर के रहने वाले सलमान से हुई, जहां वह अक्सर खाना खाने के लिए जाता था। उनकी मित्रता हुई और उसने सलमान को परिवार की आर्थिक स्थिति के बारे में बताया।

सलमान ने भी आर्थिक मदद का प्रस्ताव दिया। पर दुर्भाग्य से लाल और सलमान दो अलग-अलग गैंग के सदस्य निकले, जो उनके जैसे मेधावी छात्रों की तलाश में रहते थे, जिन्होंने अच्छे अंकों से नीट पास की थी। वे ऐसे होनहार छात्रों को एक बार फिर से नीट क्रैक करने के लिए 7-10 लाख रु. देने का वादा करके लुभाते थे, लेकिन किसी और के लिए।

भारी-भरकम पैसों के लालच में, पिछले हफ्ते दोनों अपने-अपने स्थानों से दिल्ली के लिए एक ट्रेन में सवार हुए और महिपालपुर में एक ही होटल में रुके और फिर भारतीय विद्या भवन पहुंचे, जहां परीक्षा का सेंटर था। पर भाग्य ने साथ नहीं दिया।

सेंटर पर बायोमीट्रिक मिलान नहीं होने से पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया। राजस्थान स्थित गिरोह के लाल सहित दो सदस्यों को पकड़ा गया है, लेकिन बिजनौर मॉड्यूल में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है।

पुलिस का मानना है कि परीक्षा के लिए प्रॉक्सी का इंतजाम करने के लिए 30 लाख रु. का लेनदेन हुआ। महज चंद घंटों के अंदर दो होनहार विद्यार्थी कानून की नजरों में “गुनहगार’ बन गए और अभी तक की स्थिति में उनका भविष्य अधर में है।

सुमित और कृष्ण दोनों ने अगर थोड़ा-सा धैर्य रखा होता तो आने वाले सालों में आसानी से अपने परिवार को आर्थिक दिक्कतों से बाहर निकाल सकते थे। पर दुर्भाग्य से उन्होंने एक ऐसे गिरोह की ओर हाथ बढ़ाया जो सिस्टम की जड़ें खोखली कर रहा था और चिकित्सा जैसे पेशे में भरोसा खत्म कर रहा था, जो कल को उनका भी पेशा होता।

फंडा यह है कि हर विद्यार्थी को यह सिखाना चाहिए कि धैर्य में वह ताकत है, जो किसी भी कोयले को चमकते हुए हीरे में बदल सकता है।

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