नंदितेश निलय का कॉलम:रोल मॉडल चुनने में अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी

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नंदितेश निलय, लेखक और वक्ता - Dainik Bhaskar

नंदितेश निलय, लेखक और वक्ता

अपने बच्चों से प्रश्न करिए कि उनके रोल मॉडल कौन हैं? मुमकिन है कि इसका जवाब टीवी या सोशल मीडिया पर बार-बार सामने आने वाले चेहरों में से कोई हो। बच्चे या किशोर जब कोई रोल मॉडल चुनते हैं, तो यह उनकी जिंदगी पर दीर्घकालिक रूप से असर डालता है।

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध-अध्ययन पर गौर करें। 11 से 18 साल के बच्चों के बीच यह अध्ययन किया गया। परिणामों में सामने आया कि जिन बच्चों के रोल मॉडल घर-परिवार के लोग यानी फैमिली हीरो है, उनका व्यवहार सधा हुआ था, जबकि जिन्होंने सेलिब्रिटीज को अपना हीरो बनाया, उनका व्यवहार जोखिमपूर्ण था।

एक सर्वेक्षण में सामने आया कि रोल मॉडल किशोरों में खरीदारी के निर्णयों को भी प्रभावित करते हैं। रोल मॉडल का सवाल इस समय इसलिए मौजूं है क्योंकि इन दिनों पान-तंबाकू के विज्ञापनों में ऐसे चेहरे भी नजर आ रहे हैं, जो पुरानी पीढ़ी के लिए भी कभी रोल मॉडल रहे। यहां अतीत के कुछ पन्ने पलटकर देखते हैं कि कुछ खिलाड़ियों ने कैसी नजीर कायम की हैं।

वाकिया 1996 विल्स वर्ल्ड कप का है। और आश्चर्य तब हुआ जब तेईस साल के सचिन के बैट पर विल्स कंपनी का लोगो ही नहीं था। ऐसा क्या हुआ कि युवा खिलाड़ी विल्स जैसे स्पांसर को भी नजरअंदाज कर रहा था। सचिन को यह बात नागवार गुजरी कि वो उस कंपनी के प्रचार का माध्यम बन रहे हैं, जो तंबाकू का व्यापार करती है।

विल्स कंपनी के कर्ता-धर्ता ब्लैंक चेक लेकर खड़े थे, लेकिन सचिन ने अपने रोल मॉडल यानी पिता की सलाह को सिर आंखों पर रखा था। और वो ये थी कि तुम कभी वो काम नहीं करोगे, जो युवा पीढ़ी को भटका दे।

अस्सी से नब्बे के दशक में चारों तरफ सचिन ही सचिन थे। वह सबसे बड़े रोल मॉडल हो चुके थे। यही कारण था कि जब किंगफिशर की तूती बोलती थी तब भी सचिन तकरीबन बीस करोड़ रुपए छोड़ने को तैयार दिखे, लेकिन पिता की सलाह से तनिक भी विचलित नहीं हुए और उस कंपनी के उत्पादों का प्रचार नहीं किया।

आखिर वो संजीदा इंसान पहले थे और फिर रोल मॉडल बनने की जिम्मेवारी को बखूबी समझते थे। बहुत से खिलाड़ियों ने किंगफिशर का प्रचार किया, पर सचिन को अपने पिता की सलाह सुनाई पड़ती रही, ना कि पैसे की खनक। आज इस महान खिलाड़ी का जन्मदिन भी है।

डिएगो माराडोना भले ही अर्जेंटीना के खिलाड़ी थे, लेकिन मेक्सिको वर्ल्ड कप ने भारत में माराडोना की आंधी लाई। लोग अपने बच्चों का नाम उनके नाम पर रखने लगे। फुटबॉल घरों-घरों तक लोकप्रिय हो गया। लेकिन जब माराडोना ने ड्रग्स लेना शुरू किया तो यह उनके रोल मॉडल की इमेज पर बहुत बड़ा दाग था।

जब रोजर फेडरर टेनिस रैकेट गुस्से से तोड़ने लगे और अपने बालों को तरह-तरह से रंगने लगे तो उनके पिता पीटर फेडरर ने उन्हें समझाया कि वो एक महान खिलाड़ी होने जा रहे हैं और संसार में उनके अनगिनत प्रशंसक उनकी आदतों को फॉलो करेंगे। और फिर फेडरर टेनिस के ब्रांड एम्बेसडर हो गए। उनकी विनम्रता की दुनिया मिसाल देने लगी।

आज आईपीएल के दौर में जहां पैसा ही खेल का पर्याय बन चुका है, वहां खिलाड़ियों को बहुत सतर्क रहने की जरूरत है। इसी संदर्भ में गौतम गंभीर ने एक उम्दा बात कही कि फॉलोअर्स को अपने आदर्श सोच समझकर चुनने चाहिए। सवाल है कि क्या पैसे के लालच में किसी भी तरह के उत्पादों का विज्ञापन करना अनैतिक नहीं है?

रोल मॉडल की भूमिका जिम्मेदारी से भरा कर्तव्य भी है। और हमें यह याद रखना चाहिए कि रोल मॉडल्स आदतें ही नहीं बनाते बल्कि ऐसे सामाजिक व्यवहार को भी बुनते हैं जो युगों तक स्मृतियां बन जाती हैं। 10 नंबर जर्सी, देश को जोड़ता क्रिकेट और आज भी सचिन-सचिन की गूंज को भला कौन भूल सकता है?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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