मनोज जोशी का कॉलम:ईरान के सिस्टम को समझना दुनिया के लिए जरूरी है

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मनोज जोशी ‘अंडरस्टैंडिंग द इंडिया चाइना बॉर्डर’ के लेखक - Dainik Bhaskar

मनोज जोशी ‘अंडरस्टैंडिंग द इंडिया चाइना बॉर्डर’ के लेखक

ईरान के 63 वर्षीय राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मृत्यु वहां के शासक-कुलीनों के लिए एक गंभीर झटका है। वे ईरान के 85 वर्षीय सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामनेई के पक्के वफादार थे और खबरें थीं कि उन्हें उनके उत्तराधिकारी के रूप में तैयार किया जा रहा था।

ईरानी कानून के मुताबिक, उपराष्ट्रपति मोहम्मद मोखबर अब अंतरिम राष्ट्रपति बन गए हैं और ईरान को 50 दिनों के भीतर राष्ट्रपति चुनाव कराने होंगे। लेकिन पूरी संभावना है कि केवल रईसी सरीखी प्रोफाइल वाले ही किसी व्यक्ति को सर्वोच्च नेता द्वारा हरी झंडी दी जाएगी।

दरअसल, ईरान की शासन-प्रणाली बहुत यूनीक है। वहां आधिकारिक तौर पर आम नागरिकों और मौलवियों के बीच शक्ति का विभाजन किया गया है। सिस्टम पर करीब से नजर डालने से पता चलता है कि यह मौलवियों और उनके रूढ़िवादी सहयोगियों की सत्ता को बनाए रखने के लिए डिजाइन किया गया है।

इस व्यवस्था के शीर्ष पर खामनेई हैं, जिनके पास लगभग हर चीज पर वीटो है। सर्वोच्च नेता को विशेषज्ञों की असेंबली द्वारा जीवन भर के लिए चुना जाता है। यह असेंबली 88 शीर्ष मौलवियों से निर्मित है, जो प्रत्यक्ष मतदान के माध्यम से आठ वर्षों में एक बार चुने जाते हैं। खामनेई ईरान में राज्यसत्ता के प्रमुख और शीर्ष धार्मिक नेता होने के साथ ही सरकार के लीडर भी हैं।

ईरान में विधायिका के दो अंग हैं- निचला सदन या कंसल्टेटिव असेंबली और ऊपरी सदन या गार्जियन काउंसिल। असेंबली एक नियमित संसद की तरह है, जिसमें गुप्त मतदान के माध्यम से प्रतिनिधियों का चुनाव होता है।

गार्जियन काउंसिल में 12 सदस्य हैं, जिनमें से आधे सर्वोच्च नेता द्वारा चुने गए मौलवी हैं और अन्य आधे निचले सदन द्वारा चुने गए न्यायविद् हैं। गार्जियन काउंसिल के पास सभी कानूनों पर वीटो है और यह उन लोगों की सूची को भी मंजूरी देती है, जो राष्ट्रपति, संसद और विशेषज्ञों की सभा के चुनाव लड़ सकते हैं।

इसके अलावा, प्रबंधन में सहायता के लिए सर्वोच्च नेता द्वारा चुने गए लगभग 30-40 लोगों की शक्तिशाली परिषद भी होती है। इस सिस्टम का इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (आईआरजीसी) पर पूर्ण नियंत्रण रहता है। आईआरजीसी, ईरानी फौज के समानांतर और उससे भी अधिक शक्तिशाली संगठन है। उसकी अपनी सेना, नौसेना और एयरोस्पेस विंग हैं।

रईसी को 2017 के चुनावों में हसन रूहानी ने हरा दिया था। रूहानी भी मौलवी थे, लेकिन वे एक व्यावहारिक व्यक्ति थे, जिन्होंने 2015 में परमाणु समझौते पर बातचीत की थी और ईरान पर से प्रतिबंध हटवाए थे। गार्जियन काउंसिल द्वारा बड़ी संख्या में अन्य उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित किए जाने के बाद रईसी ने 2021 का चुनाव जीता।

चुनाव में मतदान 50% से कम था। यह तो साफ है कि खामनेई, रूहानी जैसे किसी नेता को राष्ट्रपति के रूप में उभरने नहीं देंगे। पिछले कुछ वर्षों में, महिलाओं के हिजाब-विरोधी आंदोलनों के कारण ईरान घरेलू स्तर पर संघर्षों से जूझ रहा है। 500 से अधिक प्रदर्शनकारियों को मार दिया गया है और सैकड़ों को या तो जेल में डाल दिया है या वे गुमशुदा हैं। इसके बाद रूढ़िवादी नियमों और महिलाओं पर पाबंदियों को बढ़ा दिया गया है।

पश्चिमी प्रतिबंधों, सरकारी कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार से ईरानी अर्थव्यवस्था लड़खड़ा चुकी है। ऐसे में वह चीन और रूस से संबंधों को गहरा रहा है। चीन के द्वारा उससे की जा रही तेल की खरीद से वह अपना अस्तित्व कायम रखे हुए है। ईरान मध्य-पूर्व में एक बड़ी ताकत बन सकता था, लेकिन रूढ़िवादी नेतृत्व के चलते उसने सिस्टम पर घरेलू नियंत्रण का रास्ता चुना।

वह अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से मध्य-पूर्व में अमेरिका, इजराइल और विभिन्न अरब देशों के खिलाफ गुप्त युद्ध भी चला रहा है। इसी सिलसिले में उसने यूक्रेन-युद्ध में उपयोग के लिए रूस को लड़ाकू ड्रोन की आपूर्ति की थी। लेकिन हाल में ईरान खतरनाक ढंग से अमेरिका और इजराइल से सीधे भिड़ गया है।

ईरान से भारत के हित जुड़े हैं। वह उसके तेल का प्रमुख खरीदार था, लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों ने तेल-व्यापार को लगभग समाप्त कर दिया है। 2016 में भारत ने चाबहार बंदरगाह में निवेश के इरादे जताए थे, जिससे उसे मध्य एशिया में पाकिस्तानी नाकेबंदी को दूर करने में मदद मिलती। आगामी दस वर्षों के लिए चाबहार का प्रबंधन करने के अपने हालिया निर्णय से भारत ने संकेत दिया है कि वह ईरान के अपने विकल्प को हाल-फिलहाल तो बरकरार रखना चाहता है।

ईरान के सिस्टम पर नजर डालने से पता चलता है कि यह मौलवियों और उनके रूढ़िवादी सहयोगियों की सत्ता को बनाए रखने के लिए डिजाइन किया गया है। इस व्यवस्था के शीर्ष पर खामेनेई हैं, जिनके पास लगभग हर चीज पर वीटो है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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