शीला भट्ट का कॉलम:उभरती हुई कांग्रेस के सामने आज तीन नई चुनौतियां हैं

3 days ago 2
  • Hindi News
  • Opinion
  • Sheela Bhatt's Column Today, There Are Three New Challenges Before The Emerging Congress
शीला भट्ट वरिष्ठ पत्रकार - Dainik Bhaskar

शीला भट्ट वरिष्ठ पत्रकार

लोकसभा चुनाव ने कांग्रेस पार्टी को पुनर्जीवन दिया है। कोई भी चुनाव परिणाम अगर किसी राजनीतिक खिलाड़ी को मनोवैज्ञानिक लाभ पहुंचाता है, तो यह उसके लिए एक बड़ी उपलब्धि होती है। कांग्रेस ने भी अपना आत्मविश्वास फिर से पा लिया है, जो कोई छोटी बात नहीं। और यह राहुल और प्रियंका गांधी की गतिविधियों में साफ झलकता है। साथ ही, अब इस बात को लेकर भी कांग्रेस में कोई दुविधा नहीं रह गई है कि गांधी परिवार ही सर्वोच्च है और पार्टी पर उसका पूरा नियंत्रण होगा। इसका यह भी मतलब है कि टीम-राहुल का सभी मामलों में फैसला अंतिम होगा।

लेकिन कांग्रेस में आई यह नई बहार नाकामयाब हो जाएगी, अगर कांग्रेस 2024 के चुनाव-परिणामों को समझने में गलती करेगी। कांग्रेस को तीन मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है। पहली यह कि कांग्रेस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सफलता और निष्फलता का सही आकलन कर लेना जरूरी है।

जनता के समक्ष अपना आत्मविश्वास बढ़ाए रखना, वो एक बात है, लेकिन मोदी आज जिस जमीन पर खड़े हैं, उसका सही आकलन करना कांग्रेस की आगे की रणनीति के लिए बेहद जरूरी होगा। कांग्रेस को सोचना ये है कि भाजपा के पास अपना बहुमत नहीं है फिर भी क्या मोदी का नेतृत्व एनडीए सरकार को स्थिरता दे सकता है या नहीं? मोदी की सबसे पहली प्राथमिकता आज ये साबित करना है कि एनडीए की सरकार स्थिर है और उस पर कोई खतरा नहीं है।

भारत जैसे उलझनों से भरे बड़े देश के लिए केंद्र में स्थिर सरकार होना ही बहुत बड़ी बात होती है। मोदी की स्थिर सरकार देने की जद्दोजहद के बीच मोदी और राहुल के बीच की टक्कर अगले छह महीने में क्या रंग लाती है, उस पर पूरे देश की नजरें रहेंगी।

दूसरा, कांग्रेस को समझना है कि क्षेत्रीय दलों के साथ समझौता करने के कारण केरल (आईयूएमएल), महाराष्ट्र (एमवीए), तमिलनाडु (डीएमके) और यूपी (सपा) में सीटें मिली हैं। और यूपी में वही हुआ, जो हमेशा भारतीय राजनीति में होता आया है।

विपक्ष की ताकत से नहीं, लेकिन सरकार की बड़ी गलतियों के कारण भाजपा को नुकसान हुआ है। अगर प्रचार-युद्ध की शुरुआत में 400 पार का ओवर कॉन्फिडेंस नहीं दिखाया गया होता, यूपी, राजस्थान, बंगाल में अच्छे कैंडिडेट उतारे होते और यूपी में भाजपा में भितरघात नहीं हुआ होता तो कोई कारण नहीं है कि भाजपा को 272 सीटें नहीं मिलतीं।

अब कांग्रेस के लिए और भी जरूरी हो गया है कि वो क्षेत्रीय दलों के साथ न सिर्फ समझौता करे, पर राष्ट्रीय दल होने के नाते सबको साथ लेकर चलने की अपनी एक भूमिका भी बनाए। कांग्रेस अभी भी इतनी मजबूत नहीं हो गई है कि वो स्ट्रैटेजिक राज्यों में अकेले ही लड़े। संसद में और कांग्रेस के लिए सहानुभूति रखने वाले यूट्यूब चैनल की चर्चाओं में वो भले ही कई दिल जीत सकती है, लेकिन जमीन पर स्थानीय शासन-प्रशासन में भाजपा को टक्कर देना- वो एक अलग ही राजनीति है।

चुनाव के नतीजों के बाद राहुल गांधी ने अपनी एक प्रेसवार्ता में कहा कि भारतीय राजनीति में एक ‘टेक्टोनिक स्ट्रैटेजिक शिफ्ट’ आया है। राहुल का ये मानना सच भी हो सकता है या उनका ये अति-आत्मविश्वास भी हो सकता है। अगर मोदी केंद्र में स्थिर सरकार देते हैं और महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा के विधानसभा चुनावों में भाजपा अगर अपना वोट-शेयर बचा पाती है, तो जमीन की राजनीति बहुत बदली है, ऐसा कहना मुश्किल होगा।

कांग्रेस का सबसे बड़ा काम दलित और पिछड़े मतदाताओं ने यूपी में जो उनकी मदद करी है, उनका विश्वास बनाए रखने का है। ये तो हकीकत है कि आज भी देश के महत्त्व के राज्यों में भाजपा को क्षेत्रीय दल शिकस्त दे रहे हैं। अगर क्षेत्रीय दलों के साथ कांग्रेस का गठजोड़ बना रहे, तो ही भाजपा पर दबाव आएगा।

तीसरा, कांग्रेस को ये मानकर चलने की जरूरत है कि न भाजपा बदली है ना उसकी विचारधारा। शोधकर्ता और चिंतक हिलाल अहमद ने हाल ही में लिखा है कि बहुतेरी गैर-भाजपा पार्टियां आज भी सार्वजनिक रूप से इसको स्वीकार नहीं करना चाहती हैं कि मुस्लिमों के सक्रिय-समर्थन के बिना उन्हें कामयाबी नहीं मिल सकती थी।

भाजपा, कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियां- सब समझती हैं कि मुसलमानों के वोट की अहमियत कुछ-कुछ सीटों पर हार-जीत का फैसला कर गई है। भाजपा अपनी आगे की रणनीति इसी आधार पर बनाएगी और वो पिछले चुनावों के जैसी ही होगी। मतलब कि भाजपा कोई नई भाषा नहीं बोलने वाली है। वह आरोप लगाती रहेगी कि कांग्रेस अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण करती है।

कांग्रेस के सामने चुनौती होगी कि वो इस आरोप को अपने पर आने न दे, ताकि भाजपा हिंदुओं के हितों की एकमात्र रक्षक है, ऐसा दावा ना कर सके। अब तक तो कांग्रेस इस हिंदू-मुस्लिम राजनीतिक बवंडर से बच नहीं सकी है।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

Read Entire Article