आरती जेरथ का कॉलम:विपक्ष अपना चुनावी एजेंडा तय करने में सफल रहा

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आरती जेरथ राजनीतिक टिप्पणीकार - Dainik Bhaskar

आरती जेरथ राजनीतिक टिप्पणीकार

2014 में भारतीय जनता पार्टी के पूर्ण बहुमत से केंद्र की सत्ता में आने के बाद यह पहली बार है, जब चुनावी नैरेटिव उसके प्रतिकूल जाता मालूम हो रहा है। हालांकि लोकसभा चुनाव के लिए मतदान का केवल एक चरण ही पूरा हुआ है और छह चरण बाकी हैं, लेकिन भाजपा के आम तौर पर जुझारू स्टार-प्रचारक जमीनी मुद्दों पर उत्साही विपक्ष के सामने खुद को बैकफुट पर पा रहे हैं। विशेष रूप से एक मुद्दे ने भाजपा को परेशान कर दिया है। विपक्ष का आरोप है कि अगर मोदी जीते तो वे अपने तीसरे कार्यकाल में संविधान को बदल देंगे।

इतने वर्षों में, प्रधानमंत्री ने कभी इस बात का संज्ञान लेना जरूरी नहीं समझा कि विपक्ष उनके बारे में क्या कहता है। वो हमेशा एजेंडा तय करते थे और विरोधियों को प्रतिक्रिया देने के लिए मजबूर करते थे। लेकिन संविधान बदलने के आरोपों पर न केवल मोदी, बल्कि गृह मंत्री अमित शाह भी पिछले एक पखवाड़े में कई बार जवाब दे चुके हैं।

यह लेख लिखे जाने तक मोदी कम से कम तीन बार चुनावी सभाओं में और एक बार एक इंटरव्यू में इस आरोप से इनकार कर चुके थे। इसी तरह, शाह ने भी पहले गांधीनगर में अपना नामांकन दाखिल करने के बाद और फिर एक टीवी साक्षात्कार और उसके बाद एक प्रमुख अखबार के साथ बातचीत में विपक्ष के इस दावे को खारिज किया।

भाजपा ने राहुल गांधी पर बेबुनियाद आरोप लगाने की बात कहते हुए उनके खिलाफ चुनाव आयोग में शिकायत भी दर्ज कराई है। यह विपक्ष के लिए अप्रत्याशित साबित हुआ है और वह भाजपा को इस मुद्दे पर बचाव की मुद्रा में लाने में कामयाब रहा है।

जैसे-जैसे चुनाव-प्रचार में सरगर्मी बढ़ रही है, कथित नए संविधान पर विवाद भी तेजी से चर्चाओं में हावी होता जा रहा है। इंडिया गठबंधन के नेता इस मुद्दे को घर-घर तक पहुंचाने का कोई मौका नहीं गंवा रहे हैं। यह मुद्दा दलितों और आदिवासियों के साथ विशेष रूप से जुड़ा हुआ है, जो भाजपा के कोर-वोटरों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

उनके लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि क्या वे सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का अपना अधिकार खो देंगे। आरक्षण उनके लिए आर्थिक और सामाजिक गतिशीलता का टिकट रहा है। और इतने दशकों में इन समुदायों ने जो प्रगति की है, उसे देखते हुए दूसरी जातियां और समूह भी मांग कर रहे हैं कि आरक्षण का लाभ उन्हें भी दिया जाए।

हालांकि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व मतदाताओं को आश्वस्त करने की पूरी कोशिश कर रहा है, लेकिन जमीनी खबरें बताती हैं कि चिंताएं बढ़ती जा रही हैं। विडम्बना यह है कि इसके लिए भाजपा किसी और को दोषी नहीं ठहरा सकती।

उसके चार लोकसभा उम्मीदवारों सहित कम से कम पांच वरिष्ठ नेताओं ने खुद ही समय-समय पर यह कहा है कि जरूरत पड़ने पर संविधान को बदला जा सकता है। वास्तव में, शीर्ष नेतृत्व और दूसरी पंक्ति के नेताओं के बीच मौजूद मतभेद ने ही संविधान पर भाजपा के वास्तविक रुख पर संदेह पैदा कर दिया है।

क्या पार्टी जिस अंदरूनी अनुशासन के लिए जानी जाती है, वह अब ध्वस्त होता जा रहा है? या यह वोट बैंकों के विभिन्न समूहों को खुश रखने की एक सोची-समझी रणनीति है? हालांकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी राजनीतिक शाखाओं- पहले जनसंघ और फिर भाजपा- का इतिहास हमें बताता है कि 1950 में अपनाए गए संविधान से, उसके उदार ढांचे और उसमें निहित संघवाद की अवधारणा सहित कई आधारों पर उन्हें समस्याएं थीं।

यहां यह याद दिलाया जा सकता है कि जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तो उन्होंने संविधान की समीक्षा करने और लोकतंत्र को संसदीय दल प्रणाली से राष्ट्रपति शैली की प्रणाली में बदलने की व्यावहारिक सम्भावनाओं को परखने के लिए न्यायमूर्ति वेंकटचलैया की अध्यक्षता में एक आयोग भी नियुक्त किया था।

2024 के लोकसभा चुनाव को कुछ समय पहले तक शुरू होने से पहले ही खत्म मान लिया गया था। भाजपा नेताओं द्वारा ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा लगाया जा रहा था। विभिन्न सर्वेक्षणों में भी मोदी की भारी जीत का संकेत दिया गया था। लेकिन पहले चरण में मतदाताओं की सुस्ती के बाद- जिसमें भाजपा के प्रमुख गढ़ों में भी मतदान में 3 से 5% तक की गिरावट दर्ज की गई- सत्तारूढ़ खेमे में घबराहट के संकेत दिखाई दे रहे हैं।

राजस्थान के बांसवाड़ा में प्रधानमंत्री का भाषण भाजपा के रुख में बदलाव का संकेत देता है। ‘मोदी की गारंटी’ और ‘2047 तक विकसित भारत’ के वादे से संचालित सकारात्मक अभियान की उम्मीदें गर्मियों के मौसम में देश का तापमान बढ़ने के साथ ही लुप्त होती नजर आ रही हैं।

अंतिम चुनाव परिणाम क्या होंगे, यह तो आने वाले सप्ताह ही बताएंगे। लेकिन फिलहाल तो ऐसा लग रहा है कि विपक्ष 2024 के चुनावों के लिए अपना एजेंडा तय करने में कामयाब हो गया है।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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