एन. रघुरामन का कॉलम:अधिकार के सही इस्तेमाल में छिपी है सुपर पॉवर!

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

बोस्टन स्थित जॉन एफ कैनेडी प्रेसिडेंशियल लाइब्रेरी और म्यूजियम में प्रवेश टिकट 18 डॉलर का है। यह सबसे मशहूर पर्यटन स्थलों में शामिल है। मैं यहां जाना चाहता था क्योंकि अटलांटिक महासागर की खाड़ी पर बनी इस खूबसूरत श्वेत-श्याम इमारत में, लगभग 5 लाख तस्वीरें, साउंड रिकॉर्डिंग की 12,000 रील, 5,000 वीडियो टेप, 15 लाख फ़ीट लंबी मोशन पिक्चर फिल्म रोल और प्रकाशित सामग्री के 25 हज़ार से ज़्यादा वॉल्यूम हैं।

ये सभी 1960 के बाद के अमेरिकी इतिहास के बारे में बताते हैं, जब कैनेडी राष्ट्रपति बने थे। मैं उस दौर के इतिहास और राजनीति के बारे में और जानना चाहता था। खासतौर पर क्यूबा के संकट के बारे में, जो तब सबसे चर्चित घटनाक्रम रहा था। कैनेडी ने कहा था, ‘यह मत पूछो कि देश तुम्हारे लिए क्या कर सकता है, यह पूछो कि तुम देश के लिए क्या कर सकते हो।’ इस कथन ने भी इस हफ्ते मुझे वहां जाने के लिए प्रेरित किया।

जब मैंने काउंटर पर बैठी लड़की को 20 डॉलर दिए, तो उसने कहा, ‘यहां कैश नहीं लेते।’ मैंने क्रेडिट कार्ड दिया पर वह रिजेक्ट हो गया। मैंने दूसरा कार्ड दिया, वह भी नहीं चला। हालांकि यही कार्ड पूरे अमेरिका के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में चल रहे थे।

मैंने निराशा के साथ कहा, ‘क्या कोई और मेरे पैसे दे सकता है, मैं उसे 18 डॉलर कैश दे दूंगा।’ लड़की बोली, ‘आप सीनियर सिटीजन हैं, इसलिए 12 डॉलर ही देने होंगे। आप मेहमान के तौर पर हमसे यह टिकट ले लीजिए।’ उसने मुझे यूं ही टिकट दे दिया।

मैं हैरान था। मुझे नहीं पता था कि टिकट काउंटर की क्लर्क को भी अनजान आगंतुक के लिए इस तरह मुफ्त टिकट देने की अनुमति है। वह तो मेरे बारे में कुछ नहीं जानती थी। मैंने पूछा, ‘पक्का?’ वह तुरंत बोली, ‘मुझे खुशी होगी।’ फिर वह अगले व्यक्ति से बात करने लगी।

मैं म्यूजियम के अंदर गया और बैंक हेल्पलाइन पर फोन किया। भारत में रात के एक बजे थे, इसलिए प्रक्रिया में कुछ समय लगा और दो घंटे बाद मेरा कार्ड एक्टिवेट हो सका। चूंकि मैं जानता था कि इस म्यूजियम की देखरेख प्रवेश शुल्क से मिले पैसों से ही होती है, इसलिए मैंने वहां से निशानी के तौर पर लिए जाने वाले उपहार, जैसे फ्रिज मैगनेट, की-चेन और उस दौर के संदेश देने वाली टीशर्ट वगैरह खरीदीं क्योंकि स्टोर पर कैश लिया जा रहा था।

मेरी मंशा किसी तरह म्यूज़ियम को सहयोग करना था, जिसने मुझे मुफ़्त में प्रवेश दिया। मैंने एक स्टोर पर कार्ड चेक किया, जो कि एक्टिवेट हो चुका था। मैंने टिकट काउंटर पर जाकर क्लर्क से कहा कि मैं अब 12 डॉलर दे सकता हूं। उसने मुस्कुराकर कहा, ‘आपसे बात करके लगा कि आप वाकई अमेरिकी इतिहास को जानना चाहते हैं।

चूंकि हम यहां इतिहास को बढ़ावा देने के लिए ही हैं, इसलिए हम कुछ चुनिंदा लोगों को रोज मुफ्त में एंट्री दे सकते हैं। आज मैंने अपने इस अधिकार का इस्तेमाल आपके लिए किया। यह अच्छी बात है कि आप वापस आकर पैसे चुकाना चाहते हैं। लेकिन मैं अब ये नहीं ले सकती क्योंकि आपके टिकट को पहले ही ‘निःशुल्क’ श्रेणी में डाल चुकी हूं। धन्यवाद।’ तब मैंने उसे बताया कि मैं भारत का पत्रकार हूं, तो उसे खुशी हुई कि उसने अपना अधिकार सही व्यक्ति के लिए इस्तेमाल किया।

फंडा यह है कि जब आप अपने अधिकार का इस्तेमाल करके, ब्रांड की भलाई के लिए वाकई कुछ अच्छा करते हैं, तो आपके इस अनजानी सुपर पॉवर से पूरे संस्थान की आय और पहचान बढ़ती है।

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