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- N. Raghuraman's Column Give Space To Childhood In Children's Schedule!
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
क्या आप चाहते हैं कि बच्चा बिस्तर से उछलकर उठे और स्कूल जाए? जवाब आसान है। उन्हें जड़ों से जोड़ें। न्यूयॉर्क शहर से 17 किमी दूर, मोंटक्लेयर नामक जगह यही कर रही है। उन्होंने बच्चों की छोटी साइकिलों को ‘बाइक बस’ नाम दिया है, जो पीले रंग के कारण बस जैसी दिखती हैं।
बच्चे बीच शहर की एक तय जगह से 3.5 किमी दूर स्कूल जाते हैं। चूंकि बच्चे अलग-अलग हिस्सों से आते हैं, इसलिए वे पहले एक जगह इकट्ठा होते हैं। फिर यहां से वे ‘बाइक बस’ से 20 मिनट के सफर पर निकलते हैं।
शुरुआत में वे हफ्ते में एक दिन ऐसा करते है। इस पहल के ज़रिए माता-पिता को लगता है कि इंफ्रास्ट्रक्चर में स्थायी बदलाव की राह खुलेगी और शहर में बेहतर क्रॉसवाक, बाइक के लिए अलग लेन बन पाएंगी और ऐसा समय या दिन तय किए जा सकेंगे जब मोटर गाड़ियां न चलें।
बाइक बस का आइडिया बार्सिलोना, स्पेन में भी है। साल 1960 में कम से कम 50% अमेरिकी छात्र साइकिल से स्कूल जाते थे। ये आंकड़ा 2009 में गिरकर 13% हो गया और 2024 में इसके एक अंक में पहुंचने का अंदेशा है।
गिरावट के पीछे माता-पिता का डर है कि मौजूदा ट्रैफिक में बच्चों के लिए साइकिल से या पैदल जाना असुरक्षित है। इसलिए अब बच्चों को साइकिल से स्कूल भेजकर, अमेरिकी कोशिश कर रहे हैं कि उनके बच्चे, बचपन को भरपूर जिएं। अमेरिकी ‘लाइसेंस्ड प्ले थेरेपिस्ट’ पर भी खर्च कर रहे हैं।
यह अमेरिकी स्कूलों में मशहूर पद है, जिसे हमारे माता-पिता और स्कूल प्रबंधन को देखना चाहिए। प्ले थेरेपिस्ट समझाते हैं कि बचपन के खेल या गेम्स का युवा जीवन पर कितना गहरा असर होता है। याद कीजिए, हम स्कूल से लौटते थे, यूनिफॉर्म बदलते थे, मां जो देती थीं वह खाते थे और फिर हमसे कहा जाता था कि बाहर जाकर खेलो लेकिन रात के खाने से पहले लौट आना। तब देखने के लिए स्क्रीन नहीं थी, दूरदर्शन तक नहीं।
कुछ घरों में रेडियो थे, लेकिन उसे बड़े ही सुनते थे। लेकिन अगर मैं पूछूं कि हम कौनसे खेल खेलते थे, तो शायद सभी याद न आएं। क्योंकि हम सिर्फ मज़े के लिए खेलते थे। ये प्ले थेरेपिस्ट आज सिखा रहे हैं कि गलतियां करो और खुद उनसे सीखो। अरे हम यही तो करते थे। हमारे खेलों का कोई तय खाका नहीं था।
ये खेल बच्चों के या कभी-कभी माता-पिता के निर्देशों पर चलते थे। फिर भी इनसे आत्मविश्वास, संवाद कौशल, रिश्ते सुधारने की क्षमता और समुदाय से जुड़ने की सीख मिलती थी। ये खेल एंग्जायटी की दवा की तरह थे।
आज माता-पिता चीजों को जटिल कर रहे हैं। वे बच्चों के जीवन में दखल देने के नए तरीके तलाशते रहते हैं। वे बच्चे के शेड्यूल या डेली टाइम टेबल में खाली समय नहीं रखते। ऐसा समय जब वे बाग में दौड़ सकें, टूटी शाख बटोर सकें, किसी क्रिकेटर या हॉकी प्लेयर जैसे एक्ट कर सकें। याद है, हममें से कुछ लोग समुद्री तटीय शहरों में पले-बढ़े हैं, जहां हम सीपियां बटोरते थे, जो हमें फिर नहीं दिखीं।
कृपया काम के बाद फोन अलग रखें और बच्चों के साथ ऐसे खेलों की ओर लौटें जिनमें दिमाग लगाने की जरूरत न हो। कुछ सीपियां खोजें और दो एक-सी सीपियां मिलने पर जोर से चीखें। ऐसे बिना नियम वाले खेलों से ही बच्चा बचपन को भरपूर जी पाएगा।
फंडा यह है कि बच्चों को गलतियां करने दें और उनसे सीखने दें। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा। वे गलतियां कर पाएं, इसके लिए उन्हें आगे बढ़ने के लिए सुरक्षित माहौल दें। ऐसा माहौल हमारे खेलने के और स्कूल जाने के पुराने तरीकों से भी दिया जा सकता है।