एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
वो दृश्य याद हैं, जहां गोली लगने से घायल हुए फिल्म के नायक को ऑपरेशन थिएटर के अंदर ले जाया जाता है और फिर अगले दृश्य में मास्क के पीछे कोई अनजाना चेहरा दस्ताने पहने हाथ आगे बढ़ाता है और उसी तरह की ड्रेस पहनी नर्स उसे चिमटी थमाती है।
इसके बाद के दृश्य में कैमरा उन हाथों को दिखाता है, जो शरीर से गोली निकालते हैं और धातु की उस ट्रे में डालते हैं, जिसे मेडिकल की भाषा में किडनी ट्रे बोलते हैं और इसके बाद साउंड डायरेक्टर क्लिकिंग साउंड देता है। कैमरा किडनी ट्रे पर स्थिर रहता है और उसी आवाज के साथ दूसरी गोली भी ट्रे पर आकर गिरती है। फिर डॉक्टर एक बड़ी-सी वॉश बेसिन की ओर जाकर दस्ताने उतारते हैं, नल के बहते पानी से हाथ धोते हैं।
ताज्जुब होता है कि डॉक्टर उस किडनी ट्रे में हाथ क्यों नहीं धोते? एक तो उसमें रखी गोलियां फॉरेंसिक भेजनी होती हैं, दूसरा ये ट्रे इतनी छोटी होती है कि कोई भी हाथ न धो पाए। अगर ये इतनी ही छोटी है तो भारत में हवाई अड्डा प्राधिकरण से लेकर एयरलाइन मालिकों तक पूरा विमानन उद्योग ये आशा क्यों करता है कि हम यात्री पैंट गंदी किए बिना किडनी-ट्रे आकार के वॉश बेसिन में हाथ धोएं?
अगर विमान में सबसे छोटे वॉशरूम की होड़ हो तो ऐसे कई आधुनिक विमानों में 100 किलो वजनी लोग तो अंदर तक नहीं जा सकते! कुछ रिएलटी शो निर्माताओं को इससे आइडिया मिल सकता है कि वे किडनी ट्रे के आकार की वॉश बेसिन में हाथ धोने की स्पर्धा कराएं! यकीन नहीं हो तो किसी भी आधुनिक ए320 विमान में जाएं और खुद ही सबसे छोटे वॉश बेसिन व वॉशरूम को देखें!
जब भारतीय विमानों में वॉशरूम सिकुड़ रहे हैं, तो अमेरिकी हवाई अड्डे अपने टॉयलेट डिजाइन कर रहे हैं, जहां लोग बैग रख सकें, कोट-पैंट, लैपटॉप बैग या बैकलॉग शेल्फ में लटका सकें और हैंड्स फ्री दरवाजा बंद कर सकें। 12 से 24 घंटे लंबी फ्लाइट वाले चुनिंदा एयरपोर्ट्स टॉयलेट का अनुभव अलग स्तर पर ले जा रहे हैं।
वे रेस्टरूम में जगह बना रहे हैं, जहां लोग शॉवर ले सकें, बच्चों के कपड़े बदलने की सुविधा हो, पेट्स आराम कर सकें, आंखों को सुहाना लगने के लिए ऑर्किड लगा रहे हैं, साथ ही और शेल्व्स दे रहे हैं। वे वास्तव में आपके हवाई अड्डे के अनुभव को यथासंभव सहज बनाना चाहते हैं, विशेष रूप से उन सिंगल पैरेंट्स के लिए जिनकी संख्या बढ़ रही है।
ये विचार इसलिए आया क्योंकि यात्रियों को विमान प्रस्थान से दो-तीन घंटा पहले एयरपोर्ट आना होता है, जब वे अलसुबह पहुंचते हैं तो वॉशरूम जाना मजबूरी हो जाती है। इसलिए वे स्पा जैसा माहौल दे रहे हैं, जो हर किसी को आराम दे। एयरलाइंस चेक-इन बैगेज की कॉस्ट लगातार बढ़ा रहे हैं, ऐसे में हैंड बैगेज बढ़ रहे हैं- जिसमें ओवरकोट, हैट आदि सूटकेस तक की जगह ले लेते हैं।
एयरपोर्ट ही इकलौती एेसी जगह है जहां लोग अपनी सारी चीजें अंदर लेकर आते हैं। इसी खासियत को समझते हुए अधिकारियों ने सबसे पहले बाथरूम को आधुनिक बनाने के बारे में सोचा। वहीं भारतीय हवाई अड्डों में यात्रियों को टॉयलेट इस्तेमाल करने के लिए जिमनास्ट जैसा लचीलापन चाहिए होता है!
किसी भी सेवा क्षेत्र में उसके फंक्शनल फायदों (जैसे ट्रांसपोर्ट) से ज्यादा अनुभव मायने रखता है। आकर्षक, साफ, आरामदायक व सबसे जरूरी इंडस्ट्री के मानकों से बड़े वॉशरूम बनाकर न सिर्फ ग्राहकों को संतुष्ट करेंगे, बल्कि यात्रा भी सुखद बना सकते हैं।
फंडा यह है कि अगर आप सर्विस इंडस्ट्री में हैं तो सिर्फ चुकाई गई कीमत के बराबर सुविधाएं न दें, बल्कि थोड़ा आगे बढ़ते हुए मेहमानों को सच्चा अनुभव प्रदान करें। आप महंगी और ब्रांडेड होटल्स में एेसे अनुभव महसूस कर सकते हैं।