एन. रघुरामन का कॉलम:मूल विचार ‘डॉन्की आइडिया’ हो सकता है, पर फायदा देता है!

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

एक बार की बात है, अमेरिका में दस साल के एक बच्चे रॉबर्ट को मैदान में खेलते हुए बेबी फीमेल डॉन्की (गधी) दिखी, वह मदद के लिए पुकार रही थी। लग रहा था कि भूखी थी। इसलिए रॉबर्ट ने उसे अपना सैंडविच, थोड़ा पानी दिया और पास से नहलाकर घर ले आया।

डॉन्की को घर के बैकयार्ड में रखने के लिए घरवालों से काफी बहस के बाद उसने उन्हें मना लिया। रॉबर्ट और फीमेल डॉन्की साथ-साथ बड़े हुए। वह जहां भी जाता, वह पीछे-पीछे जाती। लोग सड़क पर रुककर उसे देखते, लेकिन उसे फर्क नहीं पड़ता।

एक बार जब उसके पिता ने उसका अपमान किया कि ‘तुम भी इस गधे की तरह बेकार हो’ तो इसे नजरअंदाज करके वह काम में लगा रहा। फिर एक दिन उसे आइडिया आया कि क्यों ना डॉन्की का दूध, साबुन-मॉइश्चराइजर बनाने वाली कंपनियों को बेचा जाए, क्योंकि रानी खुद नहाने के लिए डॉन्की का दूध इस्तेमाल करती थीं।

उसे पता चला कि इटली, ग्रीस, तुर्की जैसे देशों में भी डॉन्की के दूध का उपयोग पाक कला, औषधीय प्रयोजनों में करने का इतिहास रहा है। तब उसने डॉन्की की डेयरी बनाई और वहां का सबसे अमीर किसान बन गया। जब उसने राजकुमारी के स्नान के लिए डॉन्की के दूध की आपूर्ति शुरू की तो उसे उससे प्यार हो गया और उसने राजकुमारी से शादी कर ली!

ये काल्पनिक कहानी लग सकती है, हालांकि है भी। लेकिन इतिहास ये कैसे भूल सकता है कि मिस्र की रानी क्लियोपेट्रा, जो अपनी सुंदरता के लिए जानी जाती थीं, उन्हें रोज स्नान के लिए लगभग 700 गधी के झुंड से दूध पहुंचाया जाता था।

उन्हें ये आइडिया कहां से आया, यह तो अज्ञात है, लेकिन उनकी खूबसूरती से प्रभावित होकर शायद हिप्पोक्रेट्स (ग्रीक फिजिशियन, जो फादर ऑफ मेडिसिन कहलाते हैं) ने कहा कि गधी का दूध बुखार, लिवर समस्याओं, जोड़ों के दर्द और जहरखुरानी में कारगर है।

पश्चिमी देशों में बच्चों को सुनाई जाने वाली ये कहानी मुझे एक अंग्रेज ने तब बताई जब मैंने एक गुजराती की हालिया सफलता की कहानी साझा की, जिसने डॉन्की की डेयरी स्थापित की है और 5 हजार रु. प्रति लीटर में उनका दूध बेच रहा है!

हां, धीरेन सोलंकी ने डॉन्की फार्म शुरू किया है। वह हमेशा से सरकारी नौकरी चाहते थे, पर निजी नौकरी करनी पड़ी, जिससे बमुश्किल ही घर चलता। तभी उन्हें दक्षिण भारत में गधे पालन का पता चला, ये उन्हें लाभ का धंधा लगा। उन्होंने डॉन्की फार्म बनाने का तय किया और अपने गृहनगर गुजरात के पाटन में लोगों से मिले।

आठ महीने पहले 22 लाख रु. के निवेश से 20 डॉन्की के साथ डेयरी शुरू की और दक्षिण भारत में दूध पहुंचाकर दो से तीन लाख रु. महीने की कमाई शुरू हो गई। उनके ग्राहकों में कर्नाटक व केरल की कॉस्मेटिक कंपनियां थीं, जो अपने उत्पादों में ये इस्तेमाल करती हैं। आज इस डेयरी में 42 डॉन्की हैं और वह अब तक 39 लाख रु. निवेश कर चुके हैं।

आज उनकी डेयरी का दूध, गाय-भैंसों के दूध की तुलना में 70 गुना महंगा बिक रहा है। दिलचस्प है कि धीरेन दूध को सुखाकर पाउडर रूप में बेचने का विकल्प देख रहे हैं, जो कि एक लाख रु. किलो के आसपास होगा।

किसी और की तरह बनना आसान है। धीरेन भी सरकारी नौकरी करके गांव में किसी और की तरह बनना चाहते थे। पर उन्हें एहसास हुआ कि वो अद्वितीय हैं, जिन्हें भगवान ने खुद को साबित करने की क्षमता के साथ बनाया है। भले ही समाज की इस पर दकियानूसी सोच हो, लेकिन उन्हें बिजनेस पर यकीन था और जानते थे कि ये कमाऊ होगा।

फंडा यह है कि वास्तविक विचार हमेशा अलग खड़ा नजर आता है और लंबे समय तक याद भी रखा जाता है।

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