एन. रघुरामन का कॉलम:‘लास्ट-मिनट रश’ से बचकर संबंध सुधरते हैं

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

आपने ऐसा कितनी बार देखा कि बैंक शाम को 4 बजे बंद होने वाला हो और ठीक 5 मिनट पहले व्यस्त किराने वाला अपने कर्मचारी को भारी-भरकम कैश के साथ बैंक में ये राशि जमा करने भेज देता है, ताकि अगले दिन उस थोक व्यापारी के दिए चेक क्लियर हो जाएं? तब आपने कैशियर का चेहरा देखा?

उसने शायद थोड़ा जल्दी जाने की योजना बना रखी थी क्योंकि वो नकदी का मिलान पहले ही कर चुका था और बही-खाते की जांच लगभग पूरी कर ली थी। और जब अचानक अलग-अलग मूल्य के नोट जमा होने के लिए आते हैं, तो पूरा हिसाब गड़बड़ा जाता है।

उसे 10, 20, 50, 100, यहां तक कि 500 का बंडल भी खोलना पड़ता है और नए आए नोटों को जोड़कर फिर जमाना पड़ता है। इसमें 30 मिनट लगते हैं और घर पर समय से पहुंचने की राह देखते बच्चे-पत्नी नाराज हो जाते हैं। पर वह कैशियर कर्मचारी को मना भी नहीं कर सकता था क्योंकि वह बंद होने के समय से पहले आया था।

और अंततः सर्विस देने वाले और उसका इस्तेमाल करने वाले, दोनों के बीच केमिस्ट्री की कमी झलकती है। कैशियर कुछ गंदे नोट स्वीकार करने से मना कर देता है और यह मुद्दा मैनेजर के पास जाता है, जिसे बाद में कैशियर को अपना निर्णय बदलने के लिए कहना पड़ता है। इससे आगे उन दोनों के बीच भी मनमुटाव हो जाता है और कैशियर की पूरी शाम खराब हो जाती है।

ऐसी ही स्थिति तब बनती है, जब अभिभावक फीस जमा करने के आखिरी दिन भागकर स्कूल पहुंचते हैं, वो भी स्कूल बंद होने के ठीक दस मिनट पहले क्योंकि तभी बच्चों को लेने का भी समय होता है! वे ठीक दस मिनट पहले कैश काउंटर पर जाकर फीस जमा करते हैं। यह वैसी ही स्थिति है कि जब कोई यात्री एयरपोर्ट का चेक-इन काउंटर बंद होने या किसी संग्रहालय के बंद होने से ठीक पहले पहुंचता हो, जब आगंतुकों के निकलने का समय हो जाता है।

कहीं अंदर या बाहर जाने में ये ‘लास्ट-मिनट रश’ (आखिरी क्षण की भागमभाग) सर्विस देने वाले व उसे लेने वाले दोनों की केमिस्ट्री बिगाड़ देता है। और कर्मचारी के अवांछित तनाव का कारण बनता है और उन्हें निराश करता है।

जब ग्राहक बंद होने के समय पर आते हैं तो सर्विस देने वाले (कैशियर) को हड़बड़ी महसूस होती है, उनका बीपी बढ़ जाता है और इससे भी ऊपर यह कि शायद व्यस्त दिन में उन्होंने लंच भी न किया हो। युवा इस तरह के जैविक बदलाव झेल लेते हैं, पर जब उम्र बढ़ती है तो इसका स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव पड़ता है जिसके चलते उन पर चिड़चिड़ा होने का ठप्पा लग जाता है।

ये घटनाक्रम मुझे तब याद आए, जब शनिवार को मैं अमेरिका के "मैने' स्टेट में फोर्ट मकक्लियरी देखने और वहां भास्कर डिजिटल के लिए कुछ वीडियो रिकॉर्ड करने के लिए गया था। ये किला काफी छोटा है, एक तय राशि भुगतान करने के बाद अंदर जा सकते हैं, यह शाम को 6 बजे बंद होता है और एक ही आदमी इसकी देखभाल करता है। लेकिन मैंने देखा कि पर्यटक शाम को 5 बजे से निकलने लगे थे। यह दरअसल किले के केयरटेकर की मदद के लिए था ताकि वह देख सकें कि कोई छूट तो नहीं गया और अगले दिन के लिए इसे साफ कर सकें।

इस साधारण-से विचार और उनके सहयोग ने केयरटेकर को पूरे दिन आगंतुकों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया। वह स्वेच्छा से सभी बच्चों, पालतू जानवरों और बुजुर्गों पर नजर रख रहे थे ताकि कोई खराब रास्ते आदि पर फिसलकर गिर न जाएं।

उनका व्यवहार इतना अच्छा था क्योंकि आगंतुक भी इस बात का ख्याल रख रहे थे कि वह केयरटेकर समय से घर पहुंचें और शाम अपने परिवार के साथ बिताएं। पर्यटकों की उस सोच को देखकर मैंने बहुत कृतज्ञ महसूस किया।

फंडा यह है कि यदि हम अपने साथी मनुष्यों के प्रति संवेदनशील रहेंगे, उनके बारे में सोचेंगे तो फिर म्यूजियम या पार्क या फिर ज़ू जैसी जगहों से जल्दी निकलेंगे और ‘लास्ट मिनट रश’ से बचने के लिए बंद होने के समय से काफी पहले हवाई अड्डों, बैंक, स्कूल के कैश काउंटरों पर पहुंच जाएंगे। इससे अंततः इंसानी रिश्ते मजबूत ही होंगे।

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