चेतन भगत का कॉलम:भाजपा चुनावों में अपने लिए ऊंचे लक्ष्य क्यों तय करती है?

1 week ago 13
  • Hindi News
  • Opinion
  • Chetan Bhagat's Column Why Does The BJP Set High Targets For Itself In Elections?
चेतन भगत, अंग्रेजी के उपन्यासकार - Dainik Bhaskar

चेतन भगत, अंग्रेजी के उपन्यासकार

ऐसा कम ही होता है कि कोई राजनीतिक दल अपने तीसरे कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ते समय कुल सीटों में से लगभग 80 प्रतिशत को जीतने का लक्ष्य रखे। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए ने यही दु:साहस किया है।

उसने मौजूदा लोकसभा चुनावों में अपने लिए एक लगभग असंभव लक्ष्य को सामने रखा और भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, 543 सीटों की लोकसभा में, हर पांच में से लगभग चार में जीतने का विश्वास जताया।

इससे पहले ऐसा केवल 1984 के लोकसभा चुनावों में ही हुआ था, जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या के बाद मतदान हुए थे। उस समय ‘सहानुभूति’ की लहर के चलते राजीव गांधी की कांग्रेस को लगभग 50% वोट मिले थे।

भावनात्मक रूप से प्रेरित वह चुनाव स्पष्ट रूप से एकतरफा हो गया था, लेकिन उसके बाद से कांग्रेस का वोट-शेयर कभी भी उस आंकड़े के करीब नहीं आ पाया है। 2019 में कांग्रेस का वोट-शेयर 19% ही था।

पूछा जा सकता है कि क्या 400 से ज्यादा सीटें पाने से कोई फर्क पड़ता भी है? आखिरकार, आपको लोकसभा में बहुमत हासिल करने के लिए केवल 271 सीटों की ही आवश्यकता होती है। इससे ऊपर का कोई भी आंकड़ा एक बोनस की तरह ही है।

यह क्रिकेट में फाइनल मैच जीतने की तरह है, जिसमें अगर आप जीतते हैं, तो जीतते हैं- इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि प्रतिद्वंद्वी को 10 रन से हराया या 100 रन से। यही कारण है कि जो लोग सोच रहे हैं कि 400 से कम सीटें मिलना निराशाजनक होगा, वे खुद से मजाक कर रहे हैं। 271 से ऊपर कुछ भी जीत है, और 300 से ऊपर कुछ भी तो तीसरे कार्यकाल के लिए असाधारण है। 400 सीटें हासिल करना तो गेंद को मैदान के बाहर मारने की महत्वाकांक्षा है!

यकीनन, इस आंकड़े का अपनी सफलता के प्रदर्शन के अलावा भी कुछ महत्व है। इससे कुछ ऐसे संसदीय संशोधन किए जा सकते हैं और कानून बनाए जा सकते हैं, जो साधारण बहुमत से संभव नहीं हैं।

इसका यह भी मतलब होगा कि मतदाताओं ने सरकार के काम के प्रति जबर्दस्त समर्थन दिया है। और यह भी कि भारत जैसा विविधतापूर्ण देश भी अपनी सोच में एकीकृत हो सकता है। उसके बाद होने वाले संसदीय-सत्र भी बिल्कुल अलग तरह के होंगे।

भाजपा के लिए हिंदी पट्टी में समर्थन अभी भी बरकरार है, जैसा कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में देखा गया। ऐसे में इन राज्यों में लोकसभा में भाजपा का वोट-शेयर और बढ़ने की अपेक्षा लगाई जा रही है, क्योंकि वोट सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए होगा।

महाराष्ट्र में विपक्ष कई खेमों में बंटा है। इससे गैर-भाजपा वोट- चाहे वह कोई भी हो- भ्रमित हो सकता है कि किसको वोट करें। बिहार में नीतीश कुमार के एनडीए गठबंधन में शामिल होने से फायदा मिल सकता है। दक्षिणी राज्यों में भाजपा का वोट-शेयर साल-दर-साल बढ़ रहा है, भले ही उसे अभी वहां अनुमान के मुताबिक इतनी सीटें नहीं मिली हैं। भाजपा को पूर्व के राज्यों में भी उम्मीद है, खासकर पश्चिम बंगाल में जहां प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता ने भाजपा के वोट-शेयर को बढ़ाया है।

यकीनन, कांग्रेस के पास आज भी एक अच्छा वोट-शेयर है, लेकिन वह वहीं पर अटका हुआ है, जहां पहले था। 2019 के बाद से कांग्रेस ने अपने कई प्रमुख नेताओं को या तो खो दिया है या उन्हें हाशिए पर कर दिया है- सिंधिया और पायलट दो उदाहरण हैं। क्या कांग्रेस अपने में बदलाव लाएगी? कौन जानता है। लेकिन यह बाद की चर्चा है।

अभी तो यही देखा जाता है कि वह भाजपा का काम आसान बनाती है और उसे हर चुनाव के लिए और ऊंचे लक्ष्य निर्धारित करने का साहस देती है। इसी के चलते भाजपा ने 400 पार का टारगेट सेट कर दिया है। इस बार चुनाव एकतरफा माने जा रहे थे। ऐसे में नतीजों के प्रति सबसे बड़ा रोमांच यही हो सकता है कि भाजपा को कितनी सीटें मिल रही हैं!

लोकसभा में बहुमत के लिए केवल 271 सीटों की ही आवश्यकता होती है। इससे ऊपर का कोई भी आंकड़ा बोनस की तरह है। यह फाइनल मैच जीतने की तरह है, इससे फर्क नहीं पड़ता 10 रन से जीते या 100 रन से।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

लोकसभा चुनाव 2024 की ताजा खबरें, रैली, बयान, मुद्दे, इंटरव्यू और डीटेल एनालिसिस के लिए दैनिक भास्कर ऐप डाउनलोड करें। 543 सीटों की डीटेल, प्रत्याशी, वोटिंग और ताजा जानकारी एक क्लिक पर।

Read Entire Article