टिमथी वू का कॉलम:इंटरनेट की आजादी का सभी देशों को सम्मान करना चाहिए

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टिमथी वू कोलम्बिया लॉ स्कूल में साइंस-टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर - Dainik Bhaskar

टिमथी वू कोलम्बिया लॉ स्कूल में साइंस-टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर

चीन द्वारा मानवाधिकारों और इंटरनेट की स्वतंत्रता के बुनियादी मानकों का उल्लंघन नई बात नहीं है। इस महीने उसने फिर एपल को अपनी राष्ट्रीय-सीमाओं के भीतर वॉट्सएप, थ्रेड्स और सिग्नल के डाउनलोड्स को ब्लॉक करने का आदेश दिया।

वह पहले ही अपने नागरिकों को विकिपीडिया सहित सूचना के दर्जनों अन्य स्रोतों से जुड़ने से रोकता आ रहा है। वह पत्रकारों और आलोचकों पर निगरानी रखता है। ऐसे में अमेरिका को भी यह मांग करने का पूरा अधिकार है कि टिकटॉक चीनी सत्ता के नियंत्रण के अधीन न हो।

पिछले हफ्ते राष्ट्रपति बाइडन ने एक कानून पर हस्ताक्षर करके ठीक यही किया है। टिकटॉक के वर्तमान मालिक, बाइटडांस लंबे समय से इस बात पर जोर देते आ रहे हैं कि उनकी कंपनी में कार्लाइल ग्रुप, जनरल अटलांटिक और सुस्कहन्ना इंटरनेशनल ग्रुप जैसे वैश्विक संस्थागत निवेशकों की 60 प्रतिशत हिस्सेदारी है। लेकिन यह आज भी बुनियादी रूप से एक चीनी कंपनी है।

इसका मुख्यालय बीजिंग में है और चीनी अधिकारियों के निर्देशों के अधीन है। अमेरिका ने टिकटॉक को अपना नया मालिक ढूंढने के लिए 270 दिनों का समय दिया है। लेकिन वह दुनिया को यह संदेश भी दे रहा है कि आप इंटरनेट-मानदंडों की उपेक्षा करके नहीं कर सकते हैं।

इंटरनेट पर नियंत्रण के लिए जारी संघर्ष कई मायनों में सभ्यता के भविष्य के लिए संघर्ष है। 1970 और 1990 के दशक में इंटरनेट के बारे में कहा जाता था कि वह दुनिया के देशों और लोगों को आपस में जोड़कर उनमें सद्भाव लाएगा।

यह उस समय भी बहुत आदर्शवादी बात थी और आज तो हम इस विज़न से बहुत दूर चले आए हैं। लेकिन इसके बावजूद हम इंटरनेट की निगरानी और उसकी सेंसरशिप पर सीमारेखा तय कर सकते हैं और यह साफ कर सकते हैं कि जो देश इनका उल्लंघन करते हैं, वे अमेरिकी बाजारों तक पूर्ण पहुंच के हकदार नहीं।

चीन, रूस और ईरान अपनी ब्लॉकिंग, शटडाउन और सेंसरशिप के चलते वन-इंटरनेट विज़न से लंबे समय से टूटे हुए हैं। 2022 में 60 से अधिक देशों ने इंटरनेट के भविष्य के लिए एक घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए थे और उसमें उन बुनियादी ऑनलाइन सिद्धांतों को सम्मिलित किया गया था, जिनका सभी देशों को सम्मान करना चाहिए।

चीन, रूस और कुछ अन्य देशों ने उस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था। घोषणा-पत्र में कहा गया था कि चुनावों के आसपास कोई इंटरनेट-शटडाउन नहीं किया जाएगा, राजनीतिक विरोधियों की निगरानी नहीं की जाएगी, वैध सामग्री पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा आदि। हालांकि कोई भी देश इंटरनेट की आजादी के मामले में परफेक्ट नहीं है, लेकिन रूस, ईरान और क्यूबा जैसे देश ही इन सिद्धांतों के घोर-उल्लंघन में चीन से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।

इंटरनेट की स्वतंत्रता को मापने वाले फ्रीडम हाउस ने आइसलैंड को 100 में से 94वीं रैंकिंग दी है तो रूस को 21वीं और चीन को 9वीं। अकेले यह रैंकिंग ही चीन को दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण सोशल मीडिया नेटवर्कों में से एक टिकटॉक पर नियंत्रण के लिए अपात्र घोषित करने के लिए पर्याप्त है।

टिकटॉक में चीनी राज्यसत्ता की बड़ी हिस्सेदारी है और अध्ययनों से पता चला है कि वहां की सरकार अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार टिकटॉक-कंटेंट को प्रबंधित करती है। टिकटॉक को पहले ही भारत सहित कुछ अन्य देशों में प्रतिबंधित किया जा चुका है, वहीं ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अधिकांश यूरोपीय देशों में उस पर आंशिक पाबंदी है। अन्य लोकतांत्रिक देश भी अपने महत्वपूर्ण टेक-प्लेटफॉर्मों पर चीनी नियंत्रण के खतरों को गंभीरता से लें।

(द न्यूयॉर्क टाइम्स से)

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