डॉ. अरुणा शर्मा का कॉलम:संविधान की बुनियादी बातों को समझना बहुत जरूरी है

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डॉ. अरुणा शर्मा प्रैक्टिशनर डेवलपमेंट इकोनॉमिस्ट और इस्पात मंत्रालय की पूर्व सचिव - Dainik Bhaskar

डॉ. अरुणा शर्मा प्रैक्टिशनर डेवलपमेंट इकोनॉमिस्ट और इस्पात मंत्रालय की पूर्व सचिव

भारत को अपना संविधान 26 जनवरी 1950 को मिला था। संसद के पास कानून बनाने की पूरी शक्तियां हैं, जिनमें संविधान में संशोधन करने का अधिकार भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट कानून और संविधान के प्रावधानों की व्याख्या भर ही करता है।

हालांकि इसमें एक शर्त भी है, जो केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य रिट याचिका (सिविल) 135 ऑफ 1970 मामले में बहुत मजबूत होकर सामने आई है। इसकी शुरुआत सीलिंग के बाद सरप्लस भूमि के पुनर्वितरण के मामले के रूप में हुई, जब संसद ने नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सीमित करने के लिए 24वां, 25वां व 29वां संशोधन पारित किया।

साथ ही संसद को संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन करने का अधिकार दे दिया, जिससे न्यायपालिका की शक्तियां कम हो गईं। तब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति को सीमित करते हुए संविधान के मूल संरचना-सिद्धांत को रेखांकित भी किया था।

आज संविधान की मूल संरचना को समझना हमारे लिए क्यों जरूरी हो गया है? भारत उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। जहां एक तरफ हमारे पास युवा आबादी है और दूसरी तरफ बेरोजगारी है और हमारा ध्यान समावेशी विकास पर नहीं बल्कि संविधान में संशोधन सहित अन्य तुच्छ मामलों पर केंद्रित किया जा रहा है।

संविधान की मूल संरचना सबसे पहले निष्पक्ष चुनाव कराने का आदेश देती है। संविधान की सात बुनियादी संरचनाएं हैं : उसकी सर्वोच्चता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, शक्ति का पृथक्करण, धर्मनिरपेक्षता, भारत की एकता और संप्रभुता, संघीय ढांचा और सरकार का लोकतांत्रिक-गणतांत्रिक स्वरूप।

संघीय ढांचे का अर्थ यह है कि राज्य सरकारों की अपने राज्य के लिए योजनाएं बनाने और उनका विकास करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है और इसे केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। केंद्र द्वारा संकलित राजस्व का हिस्सा समय पर प्राप्त करना भी उनका अधिकार है। वहीं धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है धर्म के आधार पर भेदभाव किए बिना नागरिकों के अधिकारों की समानता। इसी तरह मार्गदर्शक सिद्धांत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अभिन्न अंग की तरह समानता और गोपनीयता का अधिकार देते हैं। पुट्टुस्वामी जजमेंट में भी यही दोहराया गया है कि निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार और संविधान के भाग III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के एक भाग के रूप में संरक्षित है।

इस मामले में नौ न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से भारत के संविधान के तहत निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में दोहराया। न्यायालय ने माना कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकारों में गारंटीकृत स्वतंत्रता का अभिन्न अंग है, और यह गरिमा, स्वायत्तता और स्वतंत्रता का आंतरिक पहलू है।

यह गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए भारत डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023 (डीपीडीपीए) के लिए मार्गदर्शक फैक्टर है। अधिनियम की विवादास्पद धाराएं सरकारी एजेंसियों को आपके व्यक्तिगत डेटा में हस्तक्षेप करने की शक्ति देती हैं, जिस पर आपत्ति जताई गई है।

इसी प्रकार आधार उपयोग अधिनियम में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि सरकारी खजाने से कोई सहायता मांगने पर ही नंबर मांगा जा सकता है अन्यथा बिना सहमति के किसी अन्य उद्देश्य के लिए इसकी मांग नहीं की जा सकती। इन तमाम बारीकियों को देश के नागरिकों को समझना होगा। यही कारण है कि आपका वॉट्सएप आदि एन्क्रिप्टेड होता है।

संविधान की कुछ अन्य महत्वपूर्ण धाराओं को समझना भी जरूरी है, जो बुनियादी अधिकारों को प्रभावी बनाती हैं और किसी भी परिस्थिति में केशवानंद भारती मामले के बाद संसद द्वारा इनमें संशोधन नहीं किया जा सकता है।

नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए ‘न्यायिक समीक्षा’ का प्रावधान किया गया है। संविधान अनुच्छेद 14 पर आधारित है, जो सभी को समानता का अधिकार प्रदान करता है। अनुच्छेद 21 जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है।

अनुच्छेद 15 धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है। प्रत्येक नागरिक को यह भी समझना होगा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए अवसर देना और स्थायी रोजगार पैदा करने के लिए अर्थव्यवस्था बनाना सरकार की जिम्मेदारी है। किसी भी सरकार को संविधान की इस संरचना में संशोधन करने का अधिकार नहीं है। और संविधान की प्रस्तावना भी उसी का हिस्सा है।

प्रत्येक नागरिक को समझना होगा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए अवसर देना और स्थायी रोजगार पैदा करना सरकार की जिम्मेदारी है। किसी भी सरकार को संविधान की इस संरचना में संशोधन करने का अधिकार नहीं है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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