भास्कर ओपिनियन:एक सदस्यीय निर्वाचन प्रणाली के विकार और इससे उपजी समस्याएँ

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12 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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आज़ाद भारत में कुछ मामले छोड़कर एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र प्रणाली (फ़र्स्ट पोस्ट द पोस्ट) को अपनाया गया। वही अब भी चल रही है। इसमें जिसे सर्वाधिक वोट मिलें, वही विजेता घोषित होता है। भले ही कुल वोटों के पचास प्रतिशत ज़्यादा वोट उसके ख़िलाफ़ पड़े हों।

इस प्रणाली का विकार इस रूप में सामने आया कि जो राजनीतिक पार्टियाँ प्रतिशत के हिसाब से अल्पमत में थीं, वे सीटों के हिसाब से बहुमत पा गईं। जो प्रत्याशी कुल वोटों का पचास प्रतिशत भी नहीं पा सके वे विजयी घोषित हो गए। इसे आप इस तरह समझ सकते हैं। जैसे किसी सीट पर सौ वोटर्स हैं। नब्बे प्रतिशत मतदान होता है यानी नब्बे वोट पड़ते हैं। कुल चार प्रत्याशियों में वोटों का बँटवारा इस तरह होता है कि तीन प्रत्याशियों को 22-22 वोट मिलते हैं और चौथे को 24 वोट मिलते हैं। ऐसे में 24 वोट पाने वाला विजयी घोषित हो जाता है जबकि इस क्षेत्र के सर्वाधिक 66 वोट उसके पक्ष में नहीं हैं।

यही वजह है कि 1977 में केवल 41.3 प्रतिशत वोट पाकर जनता पार्टी ने आधे से भी अधिक सीटें जीतकर सत्ता हासिल कर ली थी। 1989 में वोट और सीटें दोनों की कसौटी पर अयोग्य होने के बावजूद राष्ट्रीय मोर्चा ने अपनी सरकार बना ली। ग्यारहवीं लोकसभा के चुनावों में भी ऐसा ही हुआ। कांग्रेस को सर्वाधिक वोट और भाजपा को सर्वाधिक सीटें मिलीं फिर भी ये दोनों ही पार्टियाँ सत्ता से दूर रहीं और संयुक्त मोर्चा सत्ता पर क़ाबिज़ हो गया।

किसी एक पार्टी के वोटों को बिखेरने या बाँटने की गरज से उस पार्टी के प्रत्याशी की जाति के चार- छह निर्दलीय प्रत्याशी खड़े कर दिए जाते हैं।

किसी एक पार्टी के वोटों को बिखेरने या बाँटने की गरज से उस पार्टी के प्रत्याशी की जाति के चार- छह निर्दलीय प्रत्याशी खड़े कर दिए जाते हैं।

कालांतर में राजनीतिक पार्टियों ने भी इस प्रणाली का उपयोग अपने पक्ष में किया और आज भी कर रही हैं। किसी एक पार्टी के वोटों को बिखेरने या बाँटने की गरज से उस पार्टी के प्रत्याशी की जाति के चार- छह निर्दलीय प्रत्याशी खड़े कर दिए जाते हैं। वोटों के बिखराव के कारण सामने वाला जीत जाता है और निर्दलीयों की जाति वाला प्रत्याशी पराजित हो जाता है। क्योंकि उसकी जाति के वोट जो उसे मिलने वाले थे, वो कई हिस्सों में बंट चुके होते हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और कांग्रेस नेता वसंत साठे ने एक सदस्यीय निर्वाचन प्रणाली के विकारों से छुटकारा पाने के लिए सूची प्रणाली लागू करने का सुझाव दिया था। इसमें वोटिंग प्रतिशत की अधिकता के आधार पर किसी प्रत्याशी को विजयी घोषित किया जाता है। इस प्रणाली के तहत विजयी प्रत्याशी के निधन अथवा त्यागपत्र अथवा दल बदलने पर चुनाव में जो निकटतम प्रतिद्वंद्वी था, उसे जन प्रतिनिधि मान लिया जाता है। इस प्रणाली के कारण उपचुनाव और दलबदल की समस्या से काफ़ी हद तक निजात पाई जा सकती है। लेकिन अब इसका लागू होना मुश्किल ही लगता है।

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