मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम:रायबरेली से चुनाव लड़ना राहुल का राजनीतिक जुआ

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मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक - Dainik Bhaskar

मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक

राहुल गांधी ने अमेठी के बजाय रायबरेली को चुनकर एक सोचा-समझा राजनीतिक जुआ खेला है। इससे जुड़े दो परिदृश्यों पर विचार करें। पहला परिदृश्य यह है कि मान लें राहुल वायनाड और रायबरेली दोनों में जीत जाते हैं। तब उन्हें एक सीट छोड़नी होगी। यदि वे वायनाड को छोड़ते हैं, तो इससे उनका अल्पसंख्यक वोट-बैंक नाराज हो सकता है।

वायनाड के मतदाताओं में 50% से अधिक मुस्लिम और ईसाई हैं। लेकिन अगर उन्होंने रायबरेली को छोड़ा तो इसका पूरे उत्तर प्रदेश में भविष्य के चुनावों में कांग्रेस के लिए नकारात्मक परिणाम हो सकता है। एक और संभावना यह है कि राहुल वायनाड को अपने पास रखें और उनकी बहन प्रियंका गांधी रायबरेली में उपचुनाव लड़ें।

समस्या यह है कि प्रियंका संसद में गांधी परिवार के तीन सदस्यों को नहीं चाहतीं (सोनिया गांधी राज्यसभा में पहले से हैं), क्योंकि इससे भाजपा को कांग्रेस पर वंशवाद और परिवारवाद का आरोप लगाने का भरपूर मौका मिलेगा।

दूसरा परिदृश्य यह है कि मान लें राहुल रायबरेली में हार जाते हैं, लेकिन वायनाड में जीत जाते हैं। तब यह गांधी परिवार के लिए एक बड़ा राजनीतिक झटका होगा। 2019 में राहुल पहले ही स्मृति ईरानी से अमेठी में हार चुके हैं।

रायबरेली में हारने के बाद राहुल पर नेहरू-गांधी परिवार के दोनों गढ़ों को खो देने का आरोप लगाया जाएगा। तंज कसा जाएगा कि 1952 से चली आ रही विरासत को उन्होंने पांच साल में समाप्त कर दिया। रायबरेली को गांधी परिवार का अभेद्य दुर्ग माना जाता है।

सोनिया वहां से चार बार जीती हैं। उनके ससुर फिरोज गांधी 1952 और 1957 में भारत के पहले और दूसरे लोकसभा चुनाव में रायबरेली से ही जीते थे। सोनिया की सास इंदिरा गांधी ने भी 1967, 1971 और 1980 में इसी सीट पर जीत दर्ज की थी।

2019 के चुनाव में सोनिया ने रायबरेली में भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह के खिलाफ- जो इस बार फिर इसी सीट से मैदान में हैं- 1.67 लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। हालांकि यह उनके द्वारा 2014 में 3.52 लाख वोटों से हासिल की गई जीत का लगभग आधा ही था।

सबसे संभावित परिदृश्य यही है कि राहुल वायनाड और रायबरेली दोनों में जीत रहे हैं- एक जगह अल्पसंख्यक वोटों की मदद से और दूसरी जगह नेहरू-गांधी विरासत के दम पर। लेकिन क्या राहुल मध्य प्रदेश या राजस्थान की किसी सीट से जीत सकते हैं?

क्या उन्हें संसद में बने रहने के लिए हमेशा पारिवारिक सीटों और अल्पसंख्यकों के वोटों पर निर्भर रहना होगा? प्रियंका गांधी का चुनावी राजनीति से बाहर रहने का फैसला भी आश्चर्यजनक नहीं है। क्योंकि अगर प्रियंका रायबरेली की सुरक्षित सीट से खड़ी होतीं तो राहुल कहां जाते? अमेठी की सीट अब न तो राहुल के लिए सुरक्षित है और न ही प्रियंका के लिए। राहुल शायद ही केवल वायनाड से खड़े होने और उत्तर प्रदेश को पूरी तरह से छोड़ने को उचित ठहरा पाते।

राहुल को यूपी में दूसरी सुरक्षित सीट पर चुनाव लड़ने देने के लिए प्रियंका को रायबरेली से पीछे हटना पड़ा। दोनों भाई-बहन एक-दूसरे के बेहद करीब हैं। माना जा सकता है कि प्रियंका अंततः पार्टी के कामकाज का जिम्मा संभालेंगी, जैसे पहले सोनिया संभालती थीं।

कांग्रेस किसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह काम करती है, जिसमें परिवार का निर्णय ही अंतिम होता है। यह निर्णय लेने में भी कि राहुल रायबरेली से चुनाव लड़ेंगे, दोनों भाई-बहनों और उनकी मां सोनिया ने ही हर कोण से इसके नफे-नुकसान पर विचार किया था।

अब जब लोकसभा की 543 सीटों में से लगभग आधे में मतदान पूरा हो चुका है, तो सवाल यह है कि हवा किस ओर बह रही है? कम मतदान-प्रतिशत आम तौर पर सत्ता-समर्थक रूझान बताता है, जबकि बड़े पैमाने पर मतदान मतदाताओं के असंतोष और परिवर्तन की लहर की ओर इशारा करता है।

हालांकि विपक्ष कह रहा है कि भाजपा के मतदाता घर बैठे हुए हैं और उनका यह अति-आत्मविश्वास एक और ‘इंडिया शाइनिंग’ जैसा मामला साबित हो सकता है। वे जमीन पर संघ स्वयंसेवकों की घटी हुई सक्रियता की ओर भी इशारा करते हैं। तो क्या कोई उलटफेर हो सकता है? विपक्ष के कट्टर समर्थक भी जानते हैं कि यह डूबते को तिनके का सहारा वाली स्थिति है।

कांग्रेस के रणनीतिकार जिस सर्वोत्तम परिणाम की उम्मीद कर रहे हैं, वह भाजपा को 272 से 300 सीटों के बीच समेट देना है। उनका मानना है कि इतने भर से भाजपा और संघ में मोदी की स्थिति कमजोर हो जाएगी। ऐसे में 2029 के चुनाव में भाजपा को सत्ता से बाहर करने का बेहतर मौका होगा।

मान लें कि राहुल वायनाड और रायबरेली दोनों में जीत रहे हैं। एक जगह अल्पसंख्यक वोटों की मदद से और दूसरी जगह नेहरू-गांधी विरासत के चलते। लेकिन क्या वे मध्य प्रदेश या राजस्थान से भी जीत सकते हैं?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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