रुचिर शर्मा का कॉलम:दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं क्यों लड़खड़ाने लगी हैं?

1 week ago 13
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रुचिर शर्मा ग्लोबल इन्वेस्टर व बेस्टसेलिंग राइटर - Dainik Bhaskar

रुचिर शर्मा ग्लोबल इन्वेस्टर व बेस्टसेलिंग राइटर

आज दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं- अमेरिका और भारत- अपने स्थायित्व और मजबूती के लिए सबका ध्यान आकर्षित कर रही हैं। ऐसे में उन देशों पर नजर डालना दिलचस्प होगा, जिन्हें अभी कुछ समय पहले ‘स्टार परफॉर्मर’ माना जाता था, लेकिन जो अब टूट रहे हैं।

ये सभी दुनिया की 50 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से हैं, लेकिन इस दशक में उन्हें वास्तविक प्रति व्यक्ति आय वृद्धि और वैश्विक जीडीपी में हिस्सेदारी- दोनों में गिरावट का सामना करना पड़ा है। कनाडा, चिली, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका और थाईलैंड जैसे ये देश वैश्विक प्रतिस्पर्धा में दूसरों के लिए एक सबक लेकर आए हैं। यह कि ग्रोथ तो कठिन है ही, उसे बनाए रखना और भी कठिन है।

सबसे पहले कनाडा की बात करें। उसने जिस तरह से 2008 के वित्तीय संकट का सामना किया था, उसके लिए उसकी व्यापक रूप से प्रशंसा की गई। लेकिन जब दुनिया कमोडिटीज के बजाय बिग-टेक की राह पर आगे बढ़ी तो कनाडा चूक गया।

उसकी प्रति व्यक्ति जीडीपी 2020 के बाद से प्रतिवर्ष 0.4 प्रतिशत कम हो रही है- शीर्ष 50 में मौजूद किसी भी विकसित अर्थव्यवस्था के लिए सबसे खराब दर। निजी क्षेत्र की तुलना में सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरियां तेजी से बढ़ रही हैं।

निजी क्षेत्र भी मुख्यत: प्रॉपर्टी मार्केट तक ही सीमित है, जो उत्पादकता और समृद्धि में बहुत कम योगदान देता है। वहां पर आज दुनिया के सबसे महंगे हाउसिंग मार्केट में से एक है, लेकिन कई युवा उसमें खरीदारी करने में सक्षम नहीं हैं।

डिजिटल सफलता के नाम पर उसके पास एक शॉपिफाई ही है। यह ऑनलाइन स्टोर उसकी दस सबसे बड़ी कंपनियों में शामिल इकलौती टेक-कंपनी है, और यह 2021 में अपने शिखर पर पहुंचने के बाद अब उसका आधा ही कारोबार कर पा रही है।

1990 के दशक से ही लैटिन अमेरिका में एक कुशल, पूर्व-एशियाई शैली की सरकार के मॉडल के रूप में चिली चर्चित रहा था, लेकिन उसकी वह चमक अब गायब हो गई है। वह अब संविधान में सुधार के असफल प्रयासों पर राजनीतिक संघर्ष के कारण ही सुर्खियों में रहता है।

कर-संग्रह की अदूरदर्शी नीतियों के खिलाफ सड़कों पर हिंसक विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। लालफीताशाही फैल गई है। नए निवेश को मंजूरी मिलने में लगने वाला समय दोगुना होकर लगभग 20 महीने हो गया है, जिससे निवेशक बिदक रहे हैं।

मैन्युफैक्चरिंग उद्योग दूसरी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में छोटा बना हुआ है, जिनमें अर्जेंटीना और ब्राजील जैसे उसके प्रतिद्वंद्वी भी शामिल हैं। खनन उत्पाद- मुख्य रूप से तांबा- अभी भी उसके अधिकांश निर्यात के लिए जिम्मेदार है, लेकिन इससे चिली किसी पूर्वी एशियाई स्टार के बजाय पुराने जमाने की कमोडिटी अर्थव्यवस्था जैसा ही दिखता है।

किसी और विकसित अर्थव्यवस्था ने अपनी नियति में जर्मनी जैसा नाटकीय मोड़ नहीं देखा है। इसकी प्रति व्यक्ति आय वृद्धि पिछले दशक में 1.6 प्रतिशत थी, लेकिन अब पिछले कुछ वर्षों में शून्य से भी कम हो गई है।

महामारी के दौरान जर्मनी चुस्त और लचीला दिख रहा था, लेकिन चीन को निर्यात और रूस से ऊर्जा आयात पर अत्यधिक निर्भरता ने उसकी चमक घटा दी है। अपने परमाणु संयंत्रों को बंद करके, सख्त रेगुलेशन लागू करके और रूस से आयात कम होने से जर्मनी की औद्योगिक अर्थव्यवस्था सस्ती बिजली से वंचित हो गई है।

2010 में दक्षिण अफ्रीका को ब्राजील, रूस, भारत और चीन के नेतृत्व वाले बड़े, उभरते बाजारों के साथ जोड़कर ब्रिक्स में शामिल किया गया था। वह अफ्रीका महाद्वीप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था और संसाधनों से संपन्न था। लेकिन वह जिस कमोडिटी-बूम द्वारा संचालित हो रहा था, वह बाद में खत्म हो गया और उसकी कई खामियां उजागर होने लगीं।

उसकी मुद्रा रैंड- जो कमोडिटी-बूम के दौरान डॉलर के मुकाबले छह पर पहुंच गई थी- गिरकर 19 के करीब आ गई है। अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस को उन्हीं पुरानी नाकामियों का सामना करना पड़ा है : 50 प्रतिशत से ऊपर युवा बेरोजगारी, आबादी के एक चौंकाने वाले हिस्से का वेलफेयर योजनाओं पर आश्रित होना और कमजोर निवेश।

वहीं थाईलैंड, जो 1998 के संकट में कर्ज के बोझ तले दबने से पहले ‘एशियाई टाइगर्स’ का अगुवा कहलाता था, इस दशक में प्रति व्यक्ति जीडीपी में गिरावट देखने वाला एकमात्र पूर्व ‘टाइगर’ है। थाईलैंड में आय की विषमता अपने क्षेत्र के किसी भी देश से अधिक है।

विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी की असामान्य सघनता है, जहां 79 प्रतिशत गरीब रहते हैं। वहां के ग्रामीण गरीबों और बैंकॉक के एलीट वर्ग के बीच लंबे समय से चल रही राजनीतिक लड़ाई इस पर केंद्रित है कि विकास के लाभों को अच्छे से कैसे वितरित किया जाए।

ऐसे में विशेषकर भारत जैसे देशों के लिए यह एक सबक है कि ग्रोथ को हलके में न लें, एक गलती भी आपको भारी पड़ सकती है!
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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