एन. रघुरामन का कॉलम:‘बी2बी’ की तुलना में ‘सी2बी’ कचरा प्रबंधन बेहतर है

2 weeks ago 22
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

कितने घरों में, खासकर हमारे देश की गगनचुंबी इमारतों वाले फ्लैट में आपको मजबूत-सुंदर स्टेनलेस स्टील के गोल-लंबे कूड़े के डिब्बे दिखेंगे, किचन टेबल के बगल में या सब्जी काटने की टेबल के नीचे रखे इन कूड़े पात्र में दाग नहीं दिखेंगे?

65 लीटर के स्टेनलेस स्टील के ये डिब्बे क्षमता व जगह में सटीक संतुलन के साथ लिविंग स्पेस बेहतर बनाते हैं, लगता है कि किचन का ही सामान हो। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके ऊपर की डिजाइन ओपन है, जिसमें कुछ लाइट्स लगी हैं और ये तभी खुलता है, जब हाथ इसके पास जाता है।

जैसे ही कूड़ा अंदर डालते हैं, ढक्कन चुपचाप इतना मजबूती से लग जाता है कि बाहर बदबू का सवाल ही नहीं। कितने लोग सूट-बूट में मैचिंग टाई लगाकर, चमचमाते जूते पहनकर काम पर जाते हुए एक हाथ में ब्रीफकेस तो दूसरे हाथ में बड़ा-सा डस्टबिन बैग ले जाते दिखते हैं? और बाहर जाते हुए चुपचाप इसे बिल्डिंग के कूड़ेदान में डालकर निकल जाते हैं?

हममें से कितने लोग कुछ खाने के बाद टेबल को टिशू से साफ करते हैं, खासकर सार्वजनिक जगहों पर और टेबल को अगले व्यक्ति के लिए साफ छोड़ते हैं? जैसा यहां के मंदिरों में देखा है। पश्चिमी में कूड़ा प्रबंधन की कार्यप्रणाली विकेंद्रीकृत है। हर व्यक्ति कूड़े को तयशुदा जगह तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उठाता है और म्युनिसिपेलिटी की राह नहीं देखता।

उनके लिए कूड़ा उनकी जिंदगी का हिस्सा है और इसे छुपाने या इससे घृणा करने की जरूरत नहीं लगती। वहां कोई भी कूड़ा किचन की वॉशबेसिन के नीचे दरवाजा बंद करके छुपाकर नहीं रखता, जहां प्लास्टिक की छोटी सी बाल्टी रखी होती है, जिसका ढक्कन और बाल्टी सालों से शायद ही कभी धोए जाते हों। यह बाहरी व्यक्ति के लिए आंख की किरकिरी बन जाता है और जब कचरा फेंकने के लिए इसका गेट खोला जाता है तो बदबू फैल जाती है।

जब मैं कहता हूं कि कचरे से नफरत मत करो तो व्यंग्य में मुस्कुराकर ये न कहें कि “क्या आप चाहते हैं, हम कूड़े से प्यार करें।’ नहीं, मैंने ऐसा नहीं कहा। जब आप किसी चीज से नफरत करते हैं, तो फिर इससे जुड़ा कोई इनोवेटिव रास्ता नहीं खोज पाते।

कूड़ा हमेशा ही जिंदगी का हिस्सा रहेगा। इसे घर में सामने, अंदर व ऐसे कंटेनर में भी रख सकते हैं, जो कूड़ा पात्र की तरह ना लगे। उच्च आय वर्ग, कम कमाने वालों की तुलना में ज्यादा कूड़ा करता है और कूड़ा भी काफी अलग होता है।

ऐसा देशों के साथ भी है जैसे अमीर, उन्नत देश, कम विकसित समकक्षों की तुलना में प्रति व्यक्ति बहुत अधिक उपभोग करते हैं और कूड़ा भी ज्यादा करते हैं। फिर भी उनके कूड़े का निष्पादन बहुत सफाई से होता है।

और मैं इसी को यहां प्रमोट कर रहा हूं। ये विशुद्ध रूप से इसके निपटान के प्रति हमारा व्यावहारिक दृष्टिकोण है। वहां हर व्यक्ति जिम्मेदारी लेता है। इसका ये भी मतलब नहीं है कि वहां के उपनगरों में कूड़ा नहीं है। उनकी हालत हमसे भी खराब है। पर मेरा तर्क है कि इस अच्छे विचार पर ध्यान केंद्रित करें जो अंततः हमारे शहरों को आज की तुलना में स्वच्छ बना सकता है।

पश्चिम में कूड़ा बी2बी (बिजनेस टु बिजनेस) तरीके से डील किया जाता है, जहां सोसायटी इसे म्युनिसिपेलिटी को सौंपती है, जबकि हमारे देश में ये सी2बी (कंज्यूमर टु बिजनेस) है जहां हर व्यक्ति इसे नगरपालिका वाले को देता है। इसलिए कुछ व्यक्ति गैर-जिम्मेदार हो जाते हैं और उनका पता लगाना मुश्किल हो जाता है।

फंडा यह है कि कूड़े से नाक-मुंह सिकोड़ना बंद करना, इसके साथ डील करना सीखने के लिए हर व्यक्ति को अपने एटीट्यूड में परिवर्तन लाने होंगे, इससे हम कूड़े को बिल्कुल अलग तरीके से संभालने लगेंगे। मुझे यकीन है, 2047 तक हम अपने देश को सबसे स्वच्छ बना देंगे।

Read Entire Article