थॉमस एल. फ्रीडमैन का कॉलम:तीन सरकारों में बदलाव बिना हालात नहीं सुधरेंगे

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थॉमस एल. फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में स्तंभकार - Dainik Bhaskar

थॉमस एल. फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में स्तंभकार

गेम-चेंजिंग घटनाओं के समाधान भी गेम-चेंजिंग होने चाहिए। हमने टू-स्टेट सोल्यूशन की बहुत बातें की हैं, लेकिन अब मैं थ्री-स्टेट सोल्यूशन का विचार सामने रखना चाहता हूं। इसका आधार यह मान्यता है कि ईरान, इजराइल और वेस्ट-बैंक में नेतृत्व-परिवर्तन के बिना इजराइल-फिलिस्तीनी संघर्ष या इजराइल-ईरान संघर्ष के किसी भी समाधान की उम्मीद नहीं है।

मैं इस बात का पक्षधर नहीं हूं कि इस्लामिक रिपब्लिक को पश्चिमी ताकतों द्वारा उखाड़कर फेंक दिया जाए। लेकिन मैं मन ही मन दुआ करता हूं कि एक दिन खुद ईरान के लोग ऐसा जरूर करेंगे। क्योंकि जब तक तेहरान में यह सरकार सत्ता में है, तब तक इस क्षेत्र में कोई सार्थक शांति या स्थिरता नहीं दिखेगी। ईरान अपने विशाल संसाधनों से उन पांच प्रतिशत कट्टरपंथियों को वित्तपोषित कर रहा है, जिन्होंने 95 प्रतिशत फिलिस्तीनियों, लेबनानी, सीरियाई, यमनियों और इराकियों का जीना दूभर कर दिया है।

इस बात को देखते हुए कि ईरानियों ने जितनी बार अपनी मजहबी हुकूमत को चुनौती दी है और जितनी बार उन्हें बेरहमी से कुचल दिया गया है,उससे यह तो साफ है कि लोगों में बदलाव के लिए इच्छाशक्ति है। हमें बस यह आशा करनी है कि वे जल्द ही कोई रास्ता खोज लेंगे। ईरान और इजराइल एक समय स्वाभाविक सहयोगी हुआ करते थे, क्योंकि वे मध्य-पूर्व की दो सबसे प्रमुख गैर-अरब शक्तियां हैं।

लेकिन यह 1979 में ईरान में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद बदल गया। यदि ईरान में एक ऐसी सरकार होती, जो दूसरों की बरबादी के बजाय अपने लोगों की तरक्की पर ध्यान केंद्रित करती तो वह इस क्षेत्र में एक अलहदा ताकत बन सकता था। यह देखकर अच्छा लगा कि इजराइल पर 300 से अधिक ड्रोन-मिसाइलें दागने के बावजूद ईरानी हुकूमत की लोकप्रियता में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई।

लेकिन जब मैं कहता हूं कि हमें रामल्ला (वेस्ट बैंक) में भी सरकार-बदल की जरूरत है तो मैं 88 वर्षीय महमूद अब्बास के नेतृत्व वाले भ्रष्ट और अयोग्य फिलिस्तीनी प्राधिकरण का जिक्र कर रहा होता हूं।फिलिस्तीनी प्राधिकरण इजराइल के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के विचार को अपनाता है। ओस्लो पैक्ट की मूल भावना भी यही थी कि दो भिन्न जातीयता के लोगों के लिए दो भिन्न राष्ट्र हों।

यही कारण है कि वेस्ट बैंक में एक मजबूत फिलिस्तीनी प्राधिकरण इजराइल और फिलिस्तीन के बीच किसी भी तरह की शांति और ईरान का मुकाबला करने के लिए एक मजबूत अरब-इजराइल-पश्चिमी गठबंधन की बुनियाद है। इसलिए अगर आप फिलिस्तीन-समर्थक हैं तो आपको वेस्ट बैंक में एक सुलझे हुए नेतृत्व वाली, साफ-सुथरी, जवाबदेह और प्रभावी हुकूमत के पक्ष में आवाज उठानी चाहिए।

इस तरह की फिलिस्तीनी हुकूमत ही टू-स्टेट सोल्यूशन में इजराइल की सहभागी बन सकती है और गाजा के संचालन का जिम्मा भी उठा सकती है। मैं जो बाइडन को इस बात के लिए पूरे अंक दूंगा कि उन्होंने ईरानी हमले से निपटने में इजराइल की मदद की। हालांकि उन्होंने तब निष्क्रिय बने रहकर एक बड़ी भूल की, जब मार्च में अब्बास ने मुहम्मद मुस्तफा के रूप में अपने करीबी सहयोगी के नेतृत्व में ‘नई’ सरकार नियुक्त की थी।

यह उस तरह के बदलाव वाली सरकार नहीं थी, जिसकी कि बहुत सारे फिलिस्तीनियों को उम्मीद थी और जिसकी उदारवादी-अरब मांग कर रहे थे। वेस्ट बैंक में रहने वाला कोई भी व्यक्ति जानता है कि वहां प्रचुर मात्रा में नेतृत्व प्रतिभा है, लेकिन इनका उपयोग नहीं किया गया है। यूएई मदद करने के लिए तैयार है, लेकिन अब्बास के रिटायर होने तक ऐसा नहीं होने वाला।

फिलिस्तीन को पूर्व प्रधानमंत्री सलाम फय्याद जैसे नेतृत्व की जरूरत है, जो कि राजनीतिक नेतृत्व का अब तक का सबसे अच्छा मॉडल रहा है। जहां तक इजराइल में नेतृत्व-परिवर्तन का सवाल है तो इसमें संदेह नहीं कि एक प्रभावी फिलिस्तीनी प्राधिकरण के निर्माण में सबसे ज्यादा अड़ंगे बेंजामिन नेतन्याहू ने ही डाले हैं। उन्होंने वर्षों तक यह सुनिश्चित किया कि हमास को गाजा में बने रहने के लिए कतर से पर्याप्त संसाधन मिलते रहें और कोई अन्य फिलिस्तीनी निर्णायक-संस्था विकसित न होने पाए।

हमास के उलट वेस्ट बैंक के फिलिस्तीनी प्राधिकरण द्वारा अहिंसक नीति अख्तियार करने की नेतन्याहू ने कभी सराहना नहीं की। जबकि इजराइल द्वारा वेस्ट बैंक में लगातार बस्तियां बसाए जाने के बावजूद वहां की सुरक्षा-सेवाओं ने हालात को काबू में रखा था। हम देख सकते हैं कि इजराइल का बड़ा नुकसान तो नेतन्याहू ने ही किया है।

  • ‘थ्री-स्टेट सोल्यूशन’ का आधार यह मान्यता है कि ईरान, इजराइल और वेस्ट-बैंक में नेतृत्व-परिवर्तन के बिना इजराइल और फिलिस्तीन के संघर्ष या इजराइल-ईरान संघर्ष के किसी भी समाधान की उम्मीद नहीं है।

(द न्यूयॉर्क टाइम्स से)

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