रुचिर शर्मा का कॉलम:यूरोप की तुलना में अमेरिका कैसे बेहतर कर पा रहा है

2 weeks ago 25
रुचिर शर्मा ग्लोबल इन्वेस्टर व बेस्टसेलिंग राइटर - Dainik Bhaskar

रुचिर शर्मा ग्लोबल इन्वेस्टर व बेस्टसेलिंग राइटर

जब अमेरिका इस महीने के अंत में अपनी जीडीपी ग्रोथ का रिपोर्ट कार्ड पेश करेगा तो लगातार सातवीं तिमाही में उसके कम से कम 2 प्रतिशत की ठोस गति से बढ़ने की उम्मीद है। यह इस सार्वभौमिक धारणा को झुठलाता है कि फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में बढ़ोतरी करने से बाजार मंदा पड़ता है।

पहले अर्थशास्त्रियों ने इन पूर्वानुमानों को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कहा, अब वे ‘नो लैंडिंग’ की बात कर रहे हैं। महामारी के बाद की इस रिकवरी में पारंपरिक पूर्वानुमान-मॉडल सामान्य से अधिक खराब रहे हैं। लेकिन क्यों? शायद अमेरिकी लचीलेपन के लिए सबसे अधिक नजरअंदाज की गई व्याख्या यह है कि- अन्य विकसित देशों की तुलना में- अमेरिका ने 2020 की मंदी खत्म होने के बाद भी अपनी अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देना जारी रखा था।

उन राजकोषीय और मौद्रिक प्रोत्साहन में से कुछ अभी भी सिस्टम में चल रहे हैं, जिससे ग्रोथ कृत्रिम रूप से ऊंची बनी हुई है और एसेट्स की कीमतें बढ़ा रही है। महामारी फैलने के बाद- राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और जो बाइडन ने लगभग 10 ट्रिलियन डॉलर के नए खर्च किए- जिसमें से 8 ट्रिलियन डॉलर तो 2020 की शुरुआत की संक्षिप्त, लॉकडाउन-प्रेरित मंदी खत्म होने के बाद ही खर्च कर दिए गए थे।

अमेरिकी सरकार का सालाना खर्च महामारी से पहले के मानक से 2 ट्रिलियन डॉलर अधिक चल रहा है और जीडीपी की हिस्सेदारी के रूप में रिकॉर्ड स्थापित करने की ओर अग्रसर है। शेष विकसित दुनिया एक अलग ही दिशा में जा रही है। जबकि महामारी की शुरुआत के बाद के वर्षों में, अमेरिका में बढ़ता घाटा उसके जीडीपी का 40 प्रतिशत हो गया था, जो यूरोप में औसत से दोगुना और यूके की तुलना में एक तिहाई अधिक था।

कुछ अनुमानों के अनुसार, 2023 में राजकोषीय प्रोत्साहन अमेरिकी विकास के एक तिहाई से अधिक के लिए जिम्मेदार था। उसके बिना दूसरी विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अमेरिका ऐसा चमत्कार नहीं दिखा सकता था।

सरकारी खर्चों से होने वाली बढ़ोतरी की तुलना में मौद्रिक वृद्धि ने जिस तरह से अर्थव्यवस्था और वित्तीय बाजारों को सुपरचार्ज कर दिया है, उसके बारे में अभी पर्याप्त बातें नहीं हो रही हैं। फेड ने महामारी के दौरान इतनी पूंजी सृजित की कि अभी भी अर्थव्यवस्था द्वारा पूरी तरह से उसे सोख नहीं लिया जा सका है।

धन-आपूर्ति की माप- जिसे एम2 के नाम से जाना जाता है (इसमें मनी-मार्केट खातों और बैंक जमा में रखी नकदी के साथ ही बचत के अन्य रूप भी शामिल हैं)- अभी भी अपने महामारी से पहले के ट्रेंड से काफी ऊपर है। यूरोप और यूके में- जहां मौद्रिक-प्रोत्साहन इतना नहीं था- एम2 वापस ट्रेंड से नीचे आ गिरा है।

इस लिक्विडिटी-हैंगओवर ने ही फेड की ब्याज दरों में बढ़ोतरी का मुकाबला किया है और एसेट्स की कीमतों के मौजूदा व्यवहार को समझने में मदद की है। मजबूत जीडीपी वृद्धि के कारण कॉर्पोरेट आमदनियां बढ़ी हैं, लेकिन स्टॉक्स की कीमतें- जिसमें बिटकॉइन, सोना आदि की तो हम बात ही नहीं कर रहे हैं- और तेजी से बढ़ रही हैं।

ऊंची दरों के बावजूद स्टॉक्स के बढ़े हुए वैल्यूएशन का यह अजीबो-गरीब कॉम्बिनेशन 1950 के दशक के बाद से ही फेड की सख्ती के किसी भी दौर में नहीं हुआ है।

हाउसिंग मार्केट को ही लें। ऊंची बंधक-दरों के बावजूद इनकी कीमतें लगातार, और अन्य विकसित देशों की तुलना में तेजी से बढ़ी हैं। 2020 के बाद से, अमेरिकियों की कुल नेटवर्थ लगभग 40 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 157 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई है और इसमें स्टॉक्स और घरों की कीमतों का खासा योगदान रहा है।

यह वेल्थ-इफेक्ट एक सुखद मोड़ कहलाएगा। इतनी संख्या में अमेरिकियों ने विदेश में गर्मी की छुट्टियां बिताने की योजना पहले कभी नहीं बनाई थी। यकीनन, इसमें इमिग्रेशन और एआई-बूम का भी योगदान रहा है।

अर्थशास्त्र में यह जानना कठिन होता है कि पिछले वित्तीय-प्रोत्साहन से बाजार में आई तेजी कब खत्म होगी। लेकिन एक बार ऐसा होने पर किसी भी पारंपरिक मॉडल की तुलना में अधिक तेजी से चीजें सपाट हो सकती हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Read Entire Article