एन. रघुरामन का कॉलम:पिता "नो-बाय' सप्ताह, महीना या साल भी बना सकते हैं

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

"आओ, कहीं चलकर कॉफी पीते हैं।' 1979 में जब मेरे पिता ने यह कहा, तो मुझे गर्व हुआ और मैंने कहा, "बहुत बढ़िया, लेकिन पैसे मैं चुकाऊंगा।' उन्होंने मेरी तरफ देखा और एक दोस्त की तरह मेरे कंधे को थपथपाया। इसका मतलब था, "बच्चे, तुम अभी पिता को ट्रीट देने जितने बड़े नहीं हुए।'

कामकाजी वयस्क के रूप में यह मेरा उनके साथ किसी रेस्तरां में पहली बार जाना था। अन्यथा एक बच्चे के रूप में तो मैं हमेशा उनके पीछे-पीछे ही चलता था। मेरे बेवकूफ दिमाग ने सोचा कि वे मेरे साथ बराबरी का व्यवहार इसलिए कर रहे हैं क्योंकि मैंने काम करना शुरू कर दिया है और उनके 30 साल के कामकाजी जीवन के बावजूद अब मैं उनसे दोगुना वेतन कमा रहा हूं। मुझे एहसास नहीं हुआ कि कॉफी का निमंत्रण मुझे तब मिला था, जब उन्होंने मुंबई से मेरे लौटने पर दो दिनों तक मेरा मुआयना किया और पैसे, बचत और खर्च के साथ मेरे जुड़ाव का अंदाजा लगाया।

हम टेबल पर बैठे और उन्होंने कहना शुरू किया, "वित्तीय स्थिति भावनाओं से जुड़ी होती है, और भावनाएं कभी-कभी कुछ ऐसा खरीदने के लिए राजी कर सकती हैं, जिसकी आपको जरूरत नहीं है। जब तुम अखबार में विज्ञापन देखकर कुछ खरीदने के लिए प्रेरित होते हो (उन दिनों सोशल मीडिया नहीं था) तो उसे तुरंत खरीदने के बजाय डायरी में लिख लो।

हफ्ते या महीने या साल के अंत में उस सूची की समीक्षा करो और तय करो कि क्या यह अभी भी खरीदने लायक है। यह मेरी डायरी है। देखो कि मैंने कितनी चीजें लिखी हैं। लेकिन अब मुझे खुशी है कि मैंने उनमें से ज्यादातर नहीं खरीदीं, क्योंकि मुझे या हमारे परिवार को उनकी जरूरत नहीं थी।

देखो, तुम नागपुर से सबसे छोटे सूटकेस के साथ गए थे। आठ महीने में तुम दो बड़े सूटकेस लेकर वापस आए, जिनमें ऐसी चीजें थीं, जिनका इस्तेमाल कुछ बार से ज्यादा नहीं होने वाला था, क्योंकि उनकी उपयोगिता सीमित है। नो-बाय चैलेंज के नियम हम खुद ही अपने पर लगाते हैं और वे सरल होते हैं।

तुम अपने नियम खुद बना सकते हो।' वे रुके, क्योंकि वेटर कॉफी लेकर आया था। उसने पूछा, "कुछ और चाहिए?' उन्होंने अपने दाहिने हाथ से वेटर को इशारा किया और हाथ को वेटर से 45 डिग्री घुमाकर मेरी ओर ले आए, जिसका मतलब था "इस नए-नवेले रईस से पूछो, जिसे पिता से अधिक कमाने पर गर्व है।'

जब मैंने वेटर से कुछ नहीं कहा, तो उन्होंने आगे कहा, "बहुत से लोग नए साल के संकल्प के रूप में ‘नो-बाय’ चुनौती की शुरुआत करते हैं, लेकिन पहले दो महीनों के बाद वे अपनी लय खो देते हैं। हमारे जैसे मध्यम वर्ग के लोगों के लिए कोई भी समय इसके लिए सही समय होता है, क्योंकि बचत हमारी प्राथमिकता होती है।

नो-बाय नियम की खूबसूरती यह है कि इसमें कोई तय नियम नहीं होते। व्यक्ति खुद चुनता है कि क्या शामिल करना है और क्या नहीं। सोचें कि बिना किसी चीज के जीना आपके लिए कितना बेहतर होगा। उदाहरण के लिए, अपनी बहन के लिए इतने सारे सस्ते सजावटी गहने खरीदने के बजाय तुम एक सोने का आभूषण खरीद सकते थे।

सस्ते गहनों ने उसे जरूर खुश किया, लेकिन वो छोटी है, खुशी जल्द ही फीकी पड़ जाएगी। सोना उसके साथ जीवन भर रहता।' वेटर बिल लेकर आया। भुगतान करते समय उन्होंने मेरे मन में चल रहे संघर्ष को पढ़ लिया और कहा, "जाओ, दोस्तों के साथ शाम का आनंद लो, और डिनर के लिए घर आओ, मैं इंतजार कर रहा हूं,' और इतना कहकर वे चले गए। मुझे "मैं इंतजार कर रहा हूं!' का मतलब पता था। इसका मतलब था, ‘किसी रेस्तरां में डिनर पर पैसे खर्च मत करना।’

यह सबक मुझे पोस्ट ग्रेजुएशन तक मिले सबक से कहीं बेहतर था। 1990 में- यानी पिता-पुत्र की उस कॉफी पार्टी के 11 साल बाद- "नो-बाय चैलेंज' की सलाह ने मुझे ऐसा जीवन बनाने में मदद की, जो मैं आज भी जी रहा हूं।

फंडा यह है कि गैर-जरूरी वस्तुओं पर खर्च करने से बचना मुश्किल हो सकता है, लेकिन पिता अपने बच्चों को एक बार में एक महीने के लिए यह चैलेंज लेने के लिए जरूर प्रेरित कर सकते हैं।

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