एन. रघुरामन का कॉलम:पुलिस गलत कामों को रोकने के लिए है या जुर्माना वसूलने के लिए?

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

होली के बाद सुरेश चंद्र पाराशर- जो तीन महीने पहले ही 80 वर्ष के हुए हैं- मध्य प्रदेश के हरदा जिले के टिमरनी के मुख्य मार्ग पर स्थित एक छोटे-से सुपर मार्केट से कुछ सामान खरीदकर अपने स्कूटर से घर लौट रहे थे।

उनकी उम्र के लोग और खास तौर पर भूमि-स्वामी शायद ही कभी स्कूटर से यात्रा करते हैं। इस इलाके में अमीर किसान रहते हैं, जो एक से ज्यादा चौपहिया वाहनों के मालिक होने के लिए जाने जाते हैं। शायद यही वजह है कि सिग्नल का इंतजार करते समय पाराशर ने एक वरिष्ठ पुलिसकर्मी का ध्यान अपनी ओर खींचा।

पुलिसकर्मी ने उनसे कागजात मांगे, जो पाराशर ने दे दिए। पुलिसकर्मी ने पाया कि उनका लाइसेंस सालों पहले ही एक्सपायर हो चुका था। लेकिन जुर्माना लेने के बजाय पुलिसकर्मी ने उनसे पूछा कि इस उम्र में स्कूटर चलाने की उनकी क्या मजबूरी है? पाराशर ने बताया कि दो साल पहले उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई थी, इसलिए उन्हें घर के काम करना पड़ते हैं।

इसके अलावा, टिमरनी में होम-डिलीवरी की सुविधा नहीं है। चूंकि स्कूटर को आसानी से पार्क किया जा सकता है, इसलिए वे इसे प्राथमिकता देते हैं। पुलिसकर्मी ने उन्हें सलाह दी कि इस उम्र में गाड़ी नहीं चलानी चाहिए और सुबह या शाम को टहलने के लिए जाते समय सीमित मात्रा में किराने का सामान खरीदते रहना चाहिए।

इसके अलावा पुलिसकर्मी ने- जो अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते हैं- पाराशर को अपना मोबाइल नंबर दिया और कहा कि अगर उन्हें किराने के किसी भी सामान की तत्काल आवश्यकता हो, तो वे उन्हें फोन कर सकते हैं।

उन पुलिसकर्मी ने कहा कि ऐसा करके मुझे लगेगा मैंने अपने बूढ़े पिता की मदद की है। तब से पाराशर घर के आस-पास एक या दो किमी से अधिक वाहन नहीं चलाते हैं। मुझे यह घटना तब याद हो आई, जब मैंने हाल ही में भोपाल की सड़कों पर रात 10 बजे कई ट्रैफिक पुलिसकर्मियों को देखा।

मुझे लगा कि देर रात को भी ट्रैफिक दोगुना हो गया था, इसलिए विभाग को सड़कों पर ट्रैफिक कांस्टेबलों को तैनात करना पड़ा। बाद में मुझे बताया गया कि चूंकि पूरे उत्तर भारत में हीटवेव चल रही थी, इसलिए बहुत-से लोग दिन के समय बाहर नहीं निकल रहे थे और ज्यादातर गतिविधियां सूर्यास्त के बाद हो रही थीं। लेकिन यह केवल आधा सच था।

मैंने एक बच्चे को देखा, जो एक छोटी गली से निकलकर मुख्य सड़क पर कोने की दुकान पर आधा लीटर दूध लेने आया था। वहां पर ट्रैफिक पुलिस ने उससे दस्तावेज दिखाने को कहा। जब बच्चे ने उन्हें अपने मोबाइल फोन पर लाइसेंस और दस्तावेज दिखाए तो उन्होंने हेलमेट न पहनने के लिए उसका चालान काट दिया।

बच्चे ने जुर्माना भरा और निराश लौट गया। मैं वहीं खड़ा था और एक सहकर्मी के साथ कुछ चर्चा कर रहा था। मैंने देखा कि उसके बाद बच्चे के पिता उसी स्कूटर पर हेलमेट पहने दूध खरीदने के लिए आ रहे थे। उन्होंने पुलिस वालों से कहा, ‘बरसात में जब सड़कों पर गड्ढे हो जाएंगे और छोटी गलियों में भी यातायात बदतर हो जाएगा तब मैं देखूंगा कि आप लोग कहां पर होंगे।

आपको शहर को नागरिकों के लिए सुरक्षित बनाने के लिए ट्रैफिक को नियंत्रित करना चाहिए और बच्चों को नियमों का पालन करने के लिए समझाना चाहिए या रात 10 बजे पेड़ के पीछे छिपकर जुर्माना वसूलना चाहिए? जितना ज्यादा आप वसूली पर ध्यान देंगे, उतना ही ज्यादा लोग आपसे नफरत करेंगे।’

फंडा यह है कि जब कोई महत्वपूर्ण काम मूल जिम्मेदारी (इस मामले में अनुशासन लाना) से हटकर सरकारी खजाने के लिए धन इकट्ठा करने में बदल जाता है, तो उसकी चमक खत्म हो जाती है।

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