पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:परिवार ‘हम’ की वृत्ति से बचते हैं, ‘मैं ’ छोड़ना पड़ेगा

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पं. विजयशंकर मेहता - Dainik Bhaskar

पं. विजयशंकर मेहता

मैं और हम, इन दो शब्दों में बहुत पुरानी प्रतिस्पर्धा है। और इसी चक्कर में इनमें झगड़ा भी हो जाता है। हम का मतलब सब मिलकर। मैं का मतलब अहंकार की घोषणा। मैं ही कर सकता हूं। मैं ही करूंगा। यदि मैं नहीं हूं, तो कुछ भी नहीं होगा।

हम का मतलब सबके साथ मिलकर चलना। परिवारों में जब मैं हावी होता है तो परिवार टूटते हैं। परिवार बचते ही हम की वृत्ति से हैं। हमें अपने परिवारों में बहुत सारे ‘मैं’ को ढूंढने की दृष्टि रखना पड़ेगी। क्योंकि बहुत सारे ‘मैं’ मिलकर हम बन तो जाते हैं, लेकिन अगर ‘मैं’ को गलाया नहीं गया तो ऊपर से तो सब हम दिखेंगे।

लेकिन भीतर से हर एक का ‘मैं’ अंगड़ाई लेगा और हम वाली व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाएगी। शिवाजी का प्रताप बढ़ता जा रहा था। उनके गुरु रामदास जी ने एक दिन घूमते-घूमते एक स्थान पर एक चट्टान को फोड़ने को कहा और उसे फोड़ा तो उसमें से कीड़ा निकला।

गुरु कुछ बोले नहीं पर योग्य शिष्य शिवाजी समझ गए गुरु ये बताना चाहते हैं कि एक पत्थर के भीतर भी कीड़ा जिंदा रह सकता है। कौन रखता है? कोई है ताकत जो हमसे ऊपर है। ईश्वर कहें या सुप्रीम पावर, लेकिन वो है। और जितना उस पर भरोसा बढ़ाओगे उतना मैं गलेगा और हम निर्मित होगा।

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