डॉ. चन्द्रकान्त लहारिया का कॉलम:इस साल डेंगू और चिकनगुनिया के मामले बढ़ सकते हैं

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डॉ. चन्द्रकान्त लहारिया, जाने माने चिकित्सक - Dainik Bhaskar

डॉ. चन्द्रकान्त लहारिया, जाने माने चिकित्सक

इस साल देश में गर्मी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और अधिकांश उत्तर, मध्य व पूर्वी भारतीय राज्यों में हीटस्ट्रोक से मौतों की खबरें आईं। हमारी डेटा रिकॉर्डिंग प्रणाली कमजोर है और मौतों की वास्तविक संख्या आधिकारिक तौर पर बताई गई संख्या से कहीं अधिक होगी।

हालांकि भीषण गर्मी अप्रत्याशित नहीं थी, पर्यावरण विशेषज्ञों और जानकारों ने पहले ही चेता दिया था कि इस साल गर्मियां भीषण रहने वाली हैं। फिर भी, जो मौतें हुईं, वे पर्याप्त योजना और निवारक उपायों की कमी को दर्शाती हैं। अब मॉनसून आने के साथ गर्मी से कुछ राहत तो मिलेगी लेकिन इस वर्ष बारिश कुछ अधिक चुनौतियां ला सकती है और कुछ राज्यों में डेंगू के मामलों में तेजी से वृद्धि हो सकती है। कारण है कि डेंगू और चिकनगुनिया एक चक्रीय पैटर्न का पालन करते हैं और हर तीन से चार साल में इनका प्रकोप होता है।

ये चक्र कोविड-19 महामारी के कारण बाधित हो गया था, लेकिन भीषण गर्मी के बाद आशंका है कि हम इस वर्ष वेक्टर जनित बीमारी के अधिक मामले देखेंगे। दक्षिणी भारतीय राज्य जैसे कि कर्नाटक में डेंगू के मामले पहले से ही बढ़ रहे हैं। दूसरी चुनौती, जिसके लिए हमें तैयार रहने की जरूरत है, वो है श्वसन संबंधी वायरल बीमारियां। भारत में इन्फ्लुएंजा का मौसम आमतौर पर बारिश के आगमन के साथ और जुलाई से अक्टूबर के महीनों में शुरू होता है। कोविड के बाद से श्वसन संबंधी बीमारियों का महामारी विज्ञान बदल गया है। हम वायरल फ्लू और अन्य श्वसन संबंधी बीमारियों के मामलों में बढ़ोतरी देख सकते हैं। इन दोनों ही चुनौतियों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को तैयार रहने की जरूरत है। सवाल है कि क्या किया जाए? क्या करना चाहिए।

पहली बात, बीमारियों की रोकथाम के लिए पानी को जमा होने से रोकने की योजना बनाने, जागरूक करने और विशेष अभियान चलाने की जरूरत है। समाधान सिर्फ अस्पतालों में डेंगू बेड या फ्लू बेड बढ़ाना नहीं है। इसकी आवश्यकता है, लेकिन बड़ा समाधान निवारक उपाय होते हैं।

दूसरा, प्रमुख शहरों में विभिन्न विभाग मिलकर काम नहीं करते हैं। इसलिए, बीमारियों की रोकथाम के लिए अग्रिम योजना और समन्वय तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है। तीसरा, मच्छरों से बचाव के लिए जन जागरूकता की आवश्यकता होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि बीमारियों की रोकथाम के लिए प्रभावी सामुदायिक भागीदारी की जरूरत है।

समुदाय अपनी भूमिका निभा सकते हैं और नगर निगमों में पार्षदों, विधायकों, सांसदों के माध्यम से कुछ जवाबदेही भी ला सकते हैं। साथ ही, स्थानीय निकायों को नियमित मूल्यांकन व जांच करनी चाहिए, जिसमें सुझाई गई प्रक्रियाओं के उल्लंघन के लिए दंडात्मक उपाय भी शामिल हैं।

चौथा, वायरल और सांस की बीमारियां पूरे परिवार को प्रभावित कर सकती हैं। लोग आमतौर पर बिना इलाज के ठीक हो जाते हैं। लेकिन जिनको पहले से कोई बीमारी होती है, उन्हें ज्यादा खतरा है। इसलिए फ्लू के मौसम में हाइड्रेटेड रहें, अच्छा खाएं और शरीर को पर्याप्त आराम देकर बीमारियों से बच सकते हैं। पांचवां, फ्लू वायरस के खिलाफ टीके उपलब्ध हैं। डायबिटीज़, हाई बीपी और सभी बुजुर्गों जैसी कमजोर आबादी को वार्षिक फ्लू टीकाकरण मिलना चाहिए।

मच्छर और वायरस पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं। मच्छर जनित बीमारियों को खत्म करने के सभी प्रयास विफल हो गए हैं। इसलिए, डेंगू के पूरी तरह खत्म होने की संभावना नहीं है। इसी तरह इस ग्रह पर इंसानों से कई गुना ज्यादा वायरस हैं। इसलिए, स्वस्थ रहने के लिए निवारक उपायों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। इसके लिए हमें महामारी विज्ञान के सिद्धांतों का सहारा लेकर समय रहते कदम उठाने चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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