प्रो. चेतन सिंह सोलंकी का कॉलम:पर्यावरण के लिए भारतीय टीम की तरह खेलना होगा! ​​​​​​​

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प्रो. चेतन सिंह सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर, संस्थापक, एनर्जी स्वराज फाउंडेशन - Dainik Bhaskar

प्रो. चेतन सिंह सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर, संस्थापक, एनर्जी स्वराज फाउंडेशन

टी20 विश्व कप जीतने के लिए दक्षिण अफ्रीका को 30 गेंदों पर सिर्फ 30 रन चाहिए थे। खतरनाक हेनरिक क्लासेन और डेविड मिलर क्रीज पर थे। भारत के लिए जीत लगभग असंभव लग रही थी। फिर भी घटनाओं ने एक अविश्वसनीय मोड़ लिया और अंत में भारतीय टीम ने 7 रनों से जीत हासिल कर ली।

भारत एक दुर्जेय प्रतिद्वंद्वी का सामना कर रहा था और मैच किसी रोलर-कोस्टर की तरह था। जैसे-जैसे खेल आगे बढ़ा, तनाव बढ़ता गया। जब ऐसा लग रहा था कि मैच हाथ से निकल रहा है, तब भारतीय टीम ने उल्लेखनीय लचीलेपन और टीम-वर्क का प्रदर्शन किया। महत्वपूर्ण क्षणों में प्रमुख खिलाड़ियों ने जिम्मेदारी संभाली। यह अविस्मरणीय वापसी इस बात का प्रमाण थी कि दबाव में दृढ़ संकल्प और प्रदर्शन कैसे अप्रत्याशित परिणाम दे सकते हैं।

आज दुनिया भी एक ऐसी ही कठिन चुनौती का सामना कर रही है। 19वीं सदी के उत्तरार्ध से पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 1.3 से 1.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। जब से औद्योगीकरण शुरू हुआ है, हमने कोयला, कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों का उपयोग करना शुरू कर दिया है।

ये ईंधन कार्बन परमाणुओं से बने होते हैं, जिनके जलने से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं। दुनिया की 80% से अधिक वर्तमान ऊर्जा-आवश्यकताओं को कार्बन-आधारित ईंधन के उपयोग से पूरा किया जाता है। इसका मतलब है कि प्रत्येक व्यक्ति की 80% से अधिक दैनिक गतिविधियां कार्बन-उत्सर्जन का कारण बनती हैं।

परिणामस्वरूप, पर्यावरण-संतुलन खतरनाक रूप से बिगड़ रहा है- हवा, पानी और मिट्टी जैसे प्राकृतिक संसाधन तेजी से दूषित हो रहे हैं और ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु-परिवर्तन अभूतपूर्व स्तर पर बढ़ रहे हैं। बाढ़, सूखा, हीटवेव और जंगल में आग की घटनाओं की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ रही हैं। दूसरी तरफ, ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है। हम सभी दुनिया भर में एक्सट्रीम-वेदर की घटनाओं को देख रहे हैं। क्या दुनिया इस स्थिति से उबरकर पर्यावरण-संतुलन को बहाल कर सकती है और जलवायु-परिवर्तन को रोक सकती है? इसका उत्तर संभवतः हां है, लेकिन इसके लिए भारतीय क्रिकेट टीम के समान दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होगी।

जिस तरह हमारे प्रमुख गेंदबाज जसप्रीत बुमराह ने नियंत्रण संभाला और अपनी टीम को जीत दिलाई, उसी तरह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ नेताओं को आगे आकर जलवायु परिवर्तन से निपटने की जरूरत है। पर्यावरण-बहाली की दिशा में 8 अरब लोगों का नेतृत्व करने के लिए दुनिया को महान नेताओं की जरूरत है।

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जलवायु-परिवर्तन से निपटने में दुनिया के नेतृत्वकर्ता के रूप में उभर सकते हैं? क्या विश्व के नेताओं को कार्बन-उत्सर्जन को नाटकीय रूप से घटाने वाली नीतियों को लागू करते हुए उनका पालन नहीं करना चाहिए? क्या हर सीईओ, प्रिंसिपल, मीडिया-संचालक, माता-पिता अपने-अपने समूहों के सच्चे नेता बन सकते हैं और कार्बन-उत्सर्जन को कम करने की दिशा में तत्काल कार्रवाई कर सकते हैं?

सूर्यकुमार यादव ने जिस तरह से सीमारेखा पर शानदार कैच लिया, उसी तरह से हर व्यक्ति को हमारी जलवायु को बचाने के हर अवसर का लाभ उठाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्बन-फुटप्रिंट को कम करके अपना योगदान दे सकता है। हर व्यक्ति ऊर्जा और सामग्री का उपयोग करता है और सीओ2 सहित अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है।

प्रत्येक व्यक्ति ऊर्जा-साक्षर बनकर और ऊर्जा और सामग्री की खपत को कम करके और स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों पर ध्यान केंद्रित कर सकता है और जीवन में हर चीज का कुशलतापूर्वक उपयोग करके जलवायु-सुधार में योगदान दे सकता है। जिस तरह हार्दिक पांड्या ने अंतिम ओवर में अपना धैर्य बनाए रखा, उसी तरह प्रत्येक संगठन; चाहे वह शैक्षणिक हो, वाणिज्यिक, सरकार, मीडिया या सामाजिक- उन्हें दृढ़ रहना चाहिए और जलवायु-परिवर्तन का सामना करने के

लिए आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए। हां, यह जरूर है कि इन कार्रवाइयों के लिए उन्हें अपने संस्थागत लक्ष्यों के साथ अल्पकालिक समझौते करना होंगे। पेरिस समझौते पर 2015 में 195 देशों ने हस्ताक्षर किए थे, जिसमें कार्बन-उत्सर्जन में भारी कटौती करने और 2030 तक 45% की कमी हासिल करने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी ढांचा स्थापित किया गया था।

इसके बावजूद कार्बन-उत्सर्जन हर साल बढ़ता जा रहा है। इसे उलटने के लिए अधिक कड़े उपायों और एकीकृत प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। दुनिया को तत्काल और निर्णायक कार्रवाई चाहिए। चुनौतियां बड़ी हैं, लेकिन दृढ़ संकल्प, नेतृत्व और सामूहिक कार्रवाई से हम जीत सकते हैं। दुनिया को पर्यावरण के मोर्चे पर सामूहिक-वापसी की जरूरत है। क्या आप इस रोमांचक संघर्ष में अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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