मनोज जोशी का कॉलम:अमेरिकी चुनाव नतीजों का दुनिया पर बहुत असर होगा

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मनोज जोशी ‘अंडरस्टैंडिंग द इंडिया चाइना बॉर्डर’ के लेखक - Dainik Bhaskar

मनोज जोशी ‘अंडरस्टैंडिंग द इंडिया चाइना बॉर्डर’ के लेखक

जब आप मौजूदा वैश्विक परिदृश्य को देखते हैं तो आपको बहुत उथल-पुथल और अशांति दिखाई देती है। हमास-इजराइल युद्ध जारी है, रूस-यूक्रेन युद्ध चल रहा है, चीन और ताइवान-फिलीपींस के बीच तनाव है और उसके साथ हमारी अपनी समस्याएं भी हैं। लेकिन फिलहाल तो हम सभी को अमेरिका में चल रहे घटनाक्रम के बारे में चिंता करने की जरूरत है, जहां राजनीति इतनी विभाजित है कि हालात गृहयुद्ध के समान हैं।

नवंबर में चुनाव होंगे, जिसके नतीजे ट्रम्प के हारने की स्थिति में रिपब्लिकन द्वारा स्वीकार किए जाने की संभावना नहीं है। बड़ी संख्या में अमेरिकियों ने 2020 के परिणामों को भी स्वीकार नहीं किया था और कुछ ने नतीजों को उलटने की भी कोशिश की थी। इस बार हालात और खराब हो सकते हैं।

अब ऐसा लगने लगा है कि ट्रम्प जीत सकते हैं, जो कि एक चिंताजनक मसला होगा। अमेरिका में अभूतपूर्व रूप से 34 बार उन्हें दोषी ठहराया गया है। सामान्य परिस्थितियों में वे राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार तक नहीं होते, लेकिन वे उम्मीदवार चुने गए हैं और चुनावों में बढ़त बनाए हुए हैं।

दरअसल न्यूयॉर्क में हश-मनी (मुंह बंद रखने के लिए दिया जाने वाला पैसा)- जिसके कारण उन पर दोष सिद्ध हुआ- उनके खिलाफ दर्ज मामलों में सबसे कम गंभीर है। जॉर्जिया में ट्रम्प के खिलाफ फर्जी मतदाताओं का उपयोग करके 2020 के चुनाव-परिणामों को पलटने की कोशिश करने का मामला दर्ज है।

फ्लोरिडा में वर्गीकृत सरकारी दस्तावेजों को चुराने और फिर उनके बारे में झूठ बोलने का गंभीर मामला दर्ज है। वाशिंगटन डीसी में 6 जनवरी, 2021 को बलवे को बढ़ावा देने का मामला दर्ज है। इसमें संदेह नहीं कि अमेरिकी लोकतंत्र अभी संकट में है।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव अजीबोगरीब होते हैं। उसमें मतदाता किसी उम्मीदवार के लिए नहीं, बल्कि अपने राज्य के निर्वाचकों (इलेक्टर्स) के समूह के लिए वोट करता है। ये निर्वाचक एक निर्वाचक मंडल का गठन करते हैं जो चुनाव के तुरंत बाद मिलते हैं और अपने राज्य में सबसे अधिक वोट प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को वोट देने के लिए बाध्य होते हैं।

दो को छोड़कर सभी राज्य ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ प्रणाली का पालन करते हैं, जिसमें लोकप्रिय वोट जीतने वाली पार्टी सभी निर्वाचकों को अपने पाले में ले आती है। प्रत्येक राज्य को उसकी जनसंख्या के आधार पर एक निश्चित संख्या में निर्वाचक मिलते हैं।

कैलिफोर्निया में 55 निर्वाचक हैं, टेक्सास में 38, जबकि उत्तरी और दक्षिणी डकोटा में केवल 3-3 निर्वाचक हैं। सभी राज्यों को मिलाकर कुल 538 निर्वाचक हैं। 270 इलेक्टोरल वोट जीतने वाला उम्मीदवार चुनाव जीत जाता है, भले ही लोकप्रिय वोट कैसा भी रहा हो। इसलिए 2016 के चुनाव में हिलेरी क्लिंटन को 48.2 प्रतिशत वोट मिले और डोनाल्ड ट्रम्प को 46.1 प्रतिशत, फिर भी ट्रम्प चुनाव जीत गए क्योंकि उन्हें 304 इलेक्टोरल वोट मिले, जबकि हिलेरी को 227 ही वोट मिले।

चुनाव-विश्लेषकों का कहना है कि अधिकांश राज्यों में परिणाम पूर्वानुमानित होते हैं। लेकिन कोई सात ऐसे राज्य हैं, जहां के परिणाम अनिश्चित रहते हैं। ये राज्य ही चुनाव परिणामों को निर्धारित करते हैं। इनमें लोकप्रिय वोट का अंतर नगण्य होता है।

कहा जाता है कि इन 7 राज्यों में फैले केवल 2 लाख मतदाताओं की मतदान-प्राथमिकता वास्तव में पूरे राष्ट्रपति चुनाव का फैसला करती है। ये हैं- पेंसिल्वेनिया, विस्कॉन्सिन, मिशिगन, उत्तरी कैरोलिना, नेवादा, एरिजोना और जॉर्जिया।

वाशिंगटन पोस्ट ने अपने गुरुवार के संस्करण में राष्ट्रीय और राज्य स्तर के मतदान डेटा के औसत के आधार पर एक सर्वेक्षण-विश्लेषण प्रकाशित किया है, जो दर्शाता है कि ट्रम्प इन 7 राज्यों में से 5 में आगे हैं। 2020 में बाइडेन ने इन 7 में से 6 राज्य जीते थे।

भारत के ट्रम्प और बाइडेन दोनों के साथ अच्छे संबंध रहे हैं, जिसके मद्देनजर नतीजों का सीधा असर भारत पर नहीं पड़ेगा। लेकिन वे अन्य जगहों पर स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं। बाइडेन प्रशासन ने चीन पर ट्रम्प के सख्त रुख का पालन किया है, इसलिए वहां भी कम बदलाव होगा। लेकिन सबसे बड़ा बदलाव यूक्रेन में हो सकता है, जहां ट्रम्प राष्ट्रपति जेलेंस्की के खास समर्थक नहीं हैं।

हाल ही में उनके दो पूर्व सलाहकारों ने ऐसी योजना का खुलासा किया था, जिसके तहत संघर्ष-विराम की मांग होगी और इसमें यूक्रेन अपने क्षेत्र का 20% या उससे अधिक हिस्सा खो सकता है। दक्षिण कोरिया और जापान के प्रति भी ट्रम्प के मन में तिरस्कार की भावना है और इन दोनों का संघर्ष चीन से रहता है।

डोनाल्ड ट्रम्प के जीतने पर सबसे बड़ा बदलाव यूक्रेन में हो सकता है, जहां ट्रम्प राष्ट्रपति जेलेंस्की के खास समर्थक नहीं हैं। संघर्ष-विराम की मांग होगी और इसमें यूक्रेन अपने क्षेत्र का 20% या उससे अधिक हिस्सा खो सकता है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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