मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम:अपने कमजोर सहयोगियों पर भरोसा कहीं भारी न पड़ जाए

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मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक - Dainik Bhaskar

मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक

पिछले साल के अंत में, मेरी किताब ‘मोदी : द चैलेंज ऑफ 2024’ के प्रकाशन के बाद टीवी चैनलों को दिए साक्षात्कारों की एक शृंखला में मैंने पूर्वानुमान लगाया था कि भाजपा लोकसभा चुनाव में 301 सीटें जीतेगी।

टाइम्स नाउ पर नाविका कुमार और मोजो चैनल पर बरखा दत्त के साथ अपने दो साक्षात्कारों के दौरान मैंने देश के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 543 सीटों को चार भौगोलिक समूहों में बांटा था। इनमें हिंदी पट्टी और पश्चिम में 10 राज्य, पूर्व में 4 राज्य, दक्षिण में 5 राज्य और उत्तर-पूर्व में 7 राज्य शामिल थे।

मैंने भाजपा के लिए हिंदी पट्टी और पश्चिम (यूपी, एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात) में 216 सीटों, पूर्व (बिहार, बंगाल, ओडिशा और झारखंड) में 50 सीटों, दक्षिण के पांचों राज्यों में 20 सीटों और पूर्वोत्तर में 15 सीटों का अनुमान लगाया था। ये सब मिलाकर 301 सीटें होती हैं। उन साक्षात्कारों के बाद बीते छह महीनों में हालात में क्या बदलाव आया है?

भाजपा के लिए पहली सकारात्मक बात दिसंबर 2023 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में अप्रत्याशित जीत थी। फिर 22 जनवरी, 2024 को राम मंदिर का उद्घाटन हुआ, जिससे धार्मिक भावनाएं चरम पर चली गईं। लेकिन जब चुनाव अभियान शुरू हुआ तो भाजपा ने तीन गलतियां कीं।

सबसे पहले, लंबी बातचीत के बाद उसने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना को बहुत अधिक सीटें (15) दे दीं। शिंदे को 13 सीटों (महाराष्ट्र सरकार में उनकी पार्टी के मंत्रियों की संख्या) तक ही सीमित रखा जाना चाहिए था।

शिंदे के कई कमजोर उम्मीदवारों के उद्धव ठाकरे की शिवसेना से हारने की संभावना है, जिससे एनडीए की सीटें घटेंगी। इससे भी बुरी बात यह है कि इसने भाजपा को 30 के बजाय 28 ही सीटों पर चुनाव लड़ने तक सीमित कर दिया है।

भाजपा ने बिहार में भी महाराष्ट्र वाली गलती को दोहराते हुए नीतीश कुमार को 16 सीटें दीं और अपने लिए केवल 17 सीटें रखीं। नीतीश की घटती लोकप्रियता से बिहार में राजद-कांग्रेस गठबंधन के मुकाबले एनडीए की सीटों में गिरावट देखी जा सकती है।

2019 में एनडीए ने महाराष्ट्र की 48 में से 41 और बिहार की 40 में से 40 सीटें जीती थीं। सांसदों की संख्या के मामले में भारत के दूसरे और चौथे सबसे बड़े राज्यों की 88 सीटों में से यह 81 सीटें थीं। 2024 में यह संख्या गिर सकती है। भाजपा ने जो तीसरी गलती की, वह पिछले 10 वर्षों के अपने उत्कृष्ट विकास-केंद्रित रिकॉर्ड पर चुनाव-प्रचार के दौरान पर्याप्त ध्यान केंद्रित नहीं करना है।

सरकार ने बुनियादी ढांचे और डिजिटल प्रौद्योगिकी से लेकर स्वास्थ्य बीमा और खाद्य सुरक्षा तक बेहतर काम किया है। लेकिन चुनाव-प्रचार राहुल गांधी पर केंद्रित हो गया, जिसने उन्हें प्रमुख विपक्षी नेता बना दिया।

खुद को मिल रहे महत्व से उत्साहित होकर राहुल ने भी प्रधानमंत्री पर अपने प्रहार बढ़ा दिए। इससे दोनों नेताओं के बीच आमने-सामने के मुकाबले की स्थिति बन गई और विपक्षी गठबंधन को नई ताकत मिली।

चुनाव के पहले तीन चरणों में कम मतदान से विपक्ष का हौसला और बढ़ा। हालांकि बाद के चरणों में मतदान में तेजी आई, लेकिन विपक्ष और उसके समर्थक पहले ही यह निष्कर्ष निकाल चुके थे कि ‘लहर-रहित’ चुनाव भाजपा की हार का संकेत दे रहे हैं। जबकि कम मतदान वास्तव में सत्ता-समर्थक रुझानों का संकेत देता है और यह बताता है कि मतदाता यथास्थिति से संतुष्ट हैं।

चुनाव प्रचार 30 मई को समाप्त हो जाएगा और भारत के इतिहास के सबसे लंबे 44 दिवसीय चुनाव में 1 जून को अंतिम चरण का मतदान होगा। इसके बाद सभी की निगाहें 4 जून पर टिक जाएंगी। परिणाम जो भी हों, भारत को अगले पांच साल आर्थिक सुधारों को गति देने में लगाने होंगे। विदेश नीति पर भी ध्यान देना जरूरी है, क्योंकि यूक्रेन और गाजा में युद्ध जारी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एड्रियाटिक सागर की सीमा से लगे प्रतिष्ठित अपुलिया क्षेत्र में जी7 बैठक में भाग लेने के लिए इतालवी प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी द्वारा विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है।

ऐसा लगता है जैसे जी7 देशों ने चुनाव-परिणामों को हल्के में ले लिया है। जबकि विपक्षी नेताओं का कहना है कि शेयर बाजार में गिरावट, चुनाव परिणाम पर अनिश्चितता के बीच विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा अपने शेयर बेचने से तो यही संकेत मिलता है कि 4 जून को उलटफेर होने जा रहा है। जो भी हो, हमें जल्द ही पता चल जाएगा!

भाजपा ने महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और बिहार में नीतीश कुमार को जरूरत से ज्यादा सीटें दे दीं। इससे नुकसान हो सकता है। चुनाव-अभियान को विकास-संबंधी कार्यों पर केंद्रित नहीं करना भी उसकी गलती साबित हो सकती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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